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२३ चन्द्रप्रभुजी का स्तवन (राग - तमे बहु मैत्री रे साहिब - ए देशी) चन्द्रप्रभ जिन साहिबा रे, शरणागत प्रतिपाल । दर्शन दुर्लभतुम त, मोहन गुण मणि माल ॥ च०१ ॥ साचो देव दयाल वो, सहजानन्दनु धाम । नामे निधि संपजे, सीझे वांछित काज ॥ च०२ || ध्येय पले रे ध्यावत, ध्याता ध्यान प्रमाण । कारणे कारज नीपजे, एवी आगम वाण ॥ च०३ || परमातम परमेशरू, पुरूषोत्तम प्रधान । सेवक नी सुणी विनती कीजे आप समान ॥ च०४ || श्रद्धा भाषण रमणता, आणी अनुभव अंग | निरागी शुरे नेह लो, होय अचल अभंग | | ०५ || चन्द्र प्रभ जिन चित्त थी, मुकु नही जिनराज । मुन त घरमांहे खेंचीयो, भक्त में सातराज ॥ च०६ || गुण निधि गरीब निवाज छो, करुणा निधि कीरपाल । उत्तम विजय कविराजनो, रतन लहे गुणमाल ॥ च०७॥
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२४ पद्मप्रभुजी का स्तवन
(राग - मेरे साहिब तुम ही हो - ए देशी)
सकल मंगल पर सदन जे, पद्य प्रभु जिन पूजा । त्रिभुवन पति तुजने तजी, दिल कुण करे दूजा || स० ॥ १ ॥ श्रज्ञा एक प्रभुतणी, सवि कामना साधे | बीजुशु गांठे बांधीये,