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२२ महावीरस्वामी का स्तवन (राग-तार हो तार प्रभु मुज सेवक भणी-ए देशी)
वीर वड़ धीर महावीर मोटो प्रभु, पेखतां पाप संताप नासे। जेहना नाम गण धाम बहु नाम थी, अविचल लील हैये उल्लासे ॥वी०१॥ कर्म अरि जीपतो दीपतो वीर तु, घोर परिषह सहे मेरू तोले । सुरे बल परखीयो रमतकरी निरखीयो, हरखीयो नाम महावीर बोले ॥वी० २॥ साप चंडकोशियो जे महा रोषीयो, पोषीयो ते सुधा नयन पुरे। एवड़ा अवगुण शा प्रभु मे कर्यां, ताहरा चरण थी राखो दूरे ॥वी०३॥ शुल पाणी सुरने प्रति बोधीयो, चंदना चित चिंता निवारी । महेरकरी घरे पहोता प्रभु जेहने, तेह पाम्या भव दुःख पारी ॥वी०४॥ गोतमादिक ने लइ प्रभु तारवा, वारवा यज्ञ मिथ्यात्व खोटो । तेह अगीआर परिवार शु बुझवी, रूझवी रोग अज्ञान मोटो ॥वी०५॥ हवे प्रभु मुज भणी तु त्रिभुवनधणी, दास अरदास सुणी सामु जोवो ।
आप पद प्रापतां आपदा कापतां, ताहरे अंश अोछुन होवे ।।वी०६॥ गुरु गुणे राजता अधिक दिवाजता, छाजता जेह कलिकाल माहे । श्री खिमा विजय पय सेव नित्यमेव लही, पामीये समरस सुजस त्याहें ॥वी०७॥