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[३८] १७ शान्तिनाथ भगवान की स्तुति का जोडा
(राग-नगरी नगरी द्वारे २ ढुडेरे सांवरिया) सकल सुखाकर प्रणमीत नागर, सागर परे गंभीरो जी। सुकृत लतावन सिंचन घनसम, भविजन-मनतरु कीरो जी ॥ सुर नर किन्नर असुर विद्याधर, वंदित पद अरविंद जी। शिवसुख कारण शुभ परिणामे, सेवो शान्ति जिणंद जी ॥१॥ सयल जिनेसर भुवन दिनेसर, अलवेसर अरिहंता जी । भविजन कुमुद संबोधन शशीसम, भयभंजन भगवंता जी । अष्टकरम अरि दल अति गंजन, रंजन मुनिजन चित्ता जी । मन शुद्धे जे जिनने आराधे, तेहने शिवसुख दित्ता जी ॥२॥ सुविहित मुनिजन मानसरोवर, सेवित राजमरालो जी। कलिमल सकल निवारण जलधर, निर्मल सूत्र रसालो जी ॥
आगम अकल सुपद पदे शोभित, उंडा अर्थ अगाधो जी। प्रवचन वचनतणि जेरचना, भविजन भावे अाराधोजी ॥३॥ विमल कमल दल निर्मल लोयण, उल्लसित करे ललिताणी जी। ब्रह्माणीदेवी निरवाणी, विघ्न हरण कण यंगी जी । मुनिवर मेघरत्न पद अनुचर, अमररत्न अनुभावे जी। निर्वाणीदेवी प्रभावे, उदय सदा सुख पावे जी ॥४॥