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[३३] थिरावली ने समाचारी, लहता सुख वहीये जी। छट्ट अट्ठम तप करता भवियण, शिवपदनां फल लहिये जी ॥३॥ इणी परे पर्व पजुसन करीये, पाप तिमिर परिहरिये जी । संवत्सरी दिन खामणा खामी, शत्रु मित्र सम गणिये जी ।। शाशनदेवी सानिध्यकारी, संघतणी रखवाली जी। बुध विवेक सेवक इम हर्षने, यो नित रंग रसाली जी ॥४॥
१२ पर्युषण की स्तुति का जोडा
(राग-श्री शत्रुजय तीरथ सार) पामी पर्व पजुसण सार, सत्तर भेदी जिनपूजा उदार, करीए हरख अपार । सदगुरु पास धरी बहु प्यार, कल्प सूत्र सुणिए सुखकार, बालस अंग उतार ॥ धरम सारथीपद सुपनां चार, सुपनपाठक आव्या दरबार, वीर जनम अधिकार । दीक्षा ने निर्वाण विचार, षट् व्याख्यान अनुक्रमे धार, सुणतां होय भवपार ॥१॥
नमि सुव्रत मल्लि अरकंत, कुंथु शान्ति ने धर्म अनंत, विमल वासुपूज्य संत । श्री श्रेयांस शीतल भगवंत, सुविधि चन्द्र सुपार्श्व भदंत, पद्म सुमति अरिहंत ॥ अभिनंदन संभव गुणखाण, अजितनाथ पाम्या निरवाण, ए चीश