________________
[३२] श्री सिद्धचकनी जे रखवाली, चक्केसरी देवी रतनाली, पगे नेउर वाचाली । कटिमेखल खलके कटि देशी, मन मंथर चाले शुभ वेसी, सोहे नाभि निवेशी ॥ उदर हृदय . कर करज विराजे, मुखथी चंदो गयणे भाजे, सघली शोभा
छाजे । श्री विजयप्रभसूरीश सहाई, कुगल सागर वाचक सुखदाई, उत्तम शिष्य सवाई ॥४॥
११ पर्युषण की स्तुति का जोडा
(राग-धीरजिनेश्वर अति अलवेसर) सुकृत करणी उदय करीने, मानवभव मैं पायो जी। श्रावकने कुले साधुने योगे, श्री जिन सही जे ध्यावो जी ॥ पर्व पजुषन पुण्ये पामी, लाहो लीजे विशेखे जी । त्रिकरण शुद्धे किरिया पाले, तेह सुकृतने लेखे जी ॥१॥ अष्ट प्रकारी पूजा करीने, भाव धरी मन गमते जी। पवित्राई धणि शुद्ध पदारथ, भजो भविक जिन भगते जी ।। पोसह कीजे दानज दीजे, चउविह संघसुजुगते जी । पर्व पजुषन पाले जे नर, आवखु बांधे सुगते जी ॥२॥ वीर चरित्र कल्याणक सुपरे, प्रवचनना गुण सुणिये जी। च्यवन जन्म दीक्षा केवल पद, इत्यादिक वर्णवीये जी ॥