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[३०] ९ सिद्धचक्रजी की स्तुति का जोडा
(राग–वीर जिनेसर अति अलबेसर) सकल सुरासर नर विद्याधर, भक्ति थकी जे सुणीये जी। वांछित पूरण सुरतरु हुँति, अधिकी महिमा सुणीये जी ॥ रोग सोग सवि संकट चूरण, जस गुण पार न मुणिये जी। सिद्धचक्र गुण भवियण अहनिश,
नित नित मुखथी गुणिये जी ॥१॥ कंचन कोमल वरणि केई, घन सामल रुचि देहा जी । कहा स्फटिक परवाला रुचिवर, पंच वरण गुण गेहाजी ॥ सत्तरीसय भरतैरावत, पंच पंच महाविदेहा जी। सिद्धचक्रनो ध्यानज ध्यावो, कर्म थया थाशे छेहाजी ॥२॥ अरिहंत सिद्ध आचारज वाचक, साधुतणा समुदाया जी । दर्शन ज्ञान चारित्र तप निर्मल, नवपद शिवपद ध्याया जी। सिद्धचक्रनो महिमा दाख्यो, शिवसाधन निपाया जी। एह विना अवर दूजो नवि लहिये,जसगुण कह्यान जाया जी॥३॥ विमल यक्ष सुर सानिध्यकारी, ग्रह गण सविदिशीपाला जी। चक्केसरी अमरि ने दिशीकुमरि, श्रुतदेवी रखवाला जी ॥ सिद्धचक्र मंत्र अधिकारी, टाले मोहना चाला जी । ज्ञान विमल प्रभु प्राण वहंता, करता मंगल माला जी ॥४॥