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[२७] अजुाली सघली ए जाणी, बोले केवल नाणी ॥ जाव जीव एक वर्षे करेवी, सौभाग्य पंवमि नामे लेवी, प्रत्येक मासे ग्रहेवी पंच पंच वस्तु देहरे ढोवी, एम साडा पंच वर्षे करेवी, आगम वाणि सुणेवी ॥३॥
सिंह गमनि सिंहलंको विराजे, सिंहनाद परे गुहिर गाजे, वदन चंद परे छाजे । कटिमेखला नेउर सुविराजे, पाये घुघरा छमछम बाजे, चालती बहुत दिवाजे ॥ गढ गिरनार तणी रखवाल, अंब लुब जूति अंबा वाल, अति चतुरा विचाल । पंचमी तपसी करत संभाल, देवी लाभविमल सुविशाल, रत्नविमल जयमाल ॥४॥
७ पंचमी की स्तुति का जोडा
(राग-वीर जिनेश्वर अति अलवेसर) पंच रुप करी मेरु शिखर गिरी, जन्म महोत्सव जेहनो जी। सोवन कलशे इन्द्र करे जग, मोटो महिमा तेहनो जी । पंचमीगति पोहता नेमीसरु, भगते जे आराधे जी । तेहने पंचमी नो तम करताअविचल मंगल वाधे जी॥१॥ इन्द्रिय पंच महा पंचानन श्री; जिने ते वस करीया जी। किरिया पंच रहित जे जिनवर, पंच नाण परिवरिया जी ।।