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[२६] सिद्धायिका देवी संघ ने सानिध्य कारी, नरपति सहु प्रणमे, गुण गावे नरनारी । पंडित गुरु मोहन दीपे कान्ती सवाई, शीशु कृष्ण पयंपे, दोलत देजो सवाई ॥४॥
६ पंचमी का स्तुति का जोडा
(गग-शत्रुजय तीरथ सार) श्री जिन नेमि जिनेश्वर सामी, एक मने आराधो धामी, प्रभु पंचम गति पामी । पंचरुप करे सुरसामि, पंच वरण कलशे करे नामी, सवि सुरपति शिव कामी ॥ जन्म महोत्सव करे इन्द्र इन्द्राणी, देवतणी ए करणी जाणी, भक्ति विशेष वखाणि । नेमजी पंचमी तप कल्याणी, गुणमंजरी वरदत्त परे प्राणी, करो भाव मन प्राणी ॥१॥
अष्टापदे चोवीश जिणंद, समेतशिखरे शुभ वीस भवि वंद, शत्रुजय आदि जिणंद । उत्कृष्टा सतरीसय जिणंद, नवकोडि केवली ज्ञानदिणंद, नवकोडी सहस मुणिंद ॥ संप्रति वीस जिणंद सोहावे, दो कोडि केवली नाम धरावे, दो कोडि सहस मुनि कहावे । ज्ञान पंचमी आराधो भावे, नमो नाणस्स जपता दुःख जावे, मन वांछित सुख थावे ॥२॥
श्री जिनवाणी सिद्धांते वखाणी, जोयण भूमि सुणो सवि प्राणी पीजिये सुधा समाणी । पंचमी एक विशेष वखाणि,