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श्रष्ट प्रकार घोतियार उठीने से
[३] पहेला कीजे वासक्षेप, प्रह उठीने प्रेमे ।। मध्यान्हे करी धोतिया, मन वच काया खेमे ॥ २ ॥ अष्ट प्रकारनी रचीये, पूजा नृत्य वाजिंत्र । भावे भावना भाविये कीजे जन्म पवित्र ॥३॥ त्रिहूं काल लई धूप दीप, प्रभु आगल कीजे । जिनवर केरी भक्ति शु, अविचल सुख लीजे ॥ ४ ॥ जिनवर पूजा जिन स्तवन, जिननो कीजे जाप । जिनवर पदने ध्याइये, जिम नावे संताप ॥ ५ ॥ कोड कोड फल दीये, उत्तर उत्तर भेद।। मान कहे इन विध करो, जिम होये भवनो छेद ॥६॥
३ दीवाली का चैत्यवन्दन त्रीस वरस केवली पणु, विचर्या महावीर । पावापुरी पधारीया, जिन शासना धीर ॥ १ ॥ हस्तीपाल नृप राय तो, रजुका सभा मझार । चरम चौमासु त्यां रहा, लेही अभिग्रह सार ॥ २ ॥ काशी कोशल देशना जानी लाभ अपार । स्वामी सुनी सहु आवीया, वंदने निरधार ॥३॥ सोल पहोर दीधी देशना, धना राय अढार । दीधी भवि हित कारणे, पिधी तेहीज पार ॥४॥ देवशर्मा बोधन भणी, गोयम गया सुजान, कार्तिक अमावास्या दिने, प्रभु पाम्या निर्वाण ॥॥