________________
[१७१] सुलतान रे । जन्म थतां जेणे सहुने आप्यु, पूरण शान्ति स्थान रे ॥ त्रिशला० २ ॥ बाल पणामां चरण अंगूठे, मेरु डिगायो जेने रे। आपण नमिये नेहे निशिदिन, ते भगवान महावीर रे ॥ त्रिशला० ३ ॥ आमलनी क्रीडामां नक्की श्राव्यो सुर अज्ञान रे। अतुल बल श्री जिननु जाणी, नाठो तजी निज मान रे ॥ त्रिशला० ४॥ संगम सुरना उपसर्ग थी, अखण्ड रह्या धैर्यवान रे । कर्म विचारे वांध्या
आंसु एने, पाडे प्रभु गुणवान रे॥ त्रिशला० ५॥ चंदन बाला सतिसुकुमाला, बाकुलानो दियो दान रे । लोहनी बेड़ी तोड़ी उद्धरी, उरमा धरी ने ध्यान रे॥त्रिशला० ६॥ गुण अनन्ता वीर प्रभु केरा, गावो मन आणंद रे । भक्ति भावे वीर चरणमां, 'मनोहर' छे तल्लीन रे ॥त्रिशला० ७॥
२ उपदेश की गहूंली (राग-धन-धन वो जगमे नरनार विमलाचल के जानेवाले-ए देशी)
धन-धन वो जगमे मुनिराज, सत्य शिक्षा के देनेवाले ॥ टेक ॥ धराया आगमोद्धारक नाम, विकसित किया कुसुम सम ज्ञान । कराते ज्ञानामृत पय पान, मुनिवर पार लगाने वाले ॥ ध० १ ॥ पथ अनुगमन करे नरनार, करते ज्ञानोन्नति प्रचार । ज्ञान से भव फेरो- मिट जाय, एसी भावना भाने वाले ॥ ध० २ ॥ पक्का दुष्ट कर्मों को