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अग्निद्योत द्विज त्रिदंडियो, पूर्व श्रायुलाख साठे मूश्रो || ३ || मध्य स्थितिए सुर स्वर्ग ईशान, दशमे मंदिरपुर द्विज ठाण । लाख छप्पन पूर्व आय पुरी, अग्निभूति त्रिदंडिक मरी ॥४॥ श्रीजे स्वर्गे मध्यायु धरी, बारमे भवे श्वेतांचीपुरी । पूरव लाख चुम्मालीस आय, भारद्वाज त्रिदंडिक थाय ||५|| तेरमे चौथे स्वर्गे रमी, काल घणो संसारे भमी । चउदमें भव राजगृही जाय, चौत्रीस लाख पूरवने आय ॥ ६ ॥ थावर विप्र त्रिदंडी थयो, पांच मे स्वर्गे मरीने गयो । सोलमे भव क्रोड वरस समाय, राजकुमार विश्वभूति थाय ||७|| संभूति मुनि पासे अणगार, दुष्कर तप करी वरस हजार । मासखमण पारणे धरी दया, मथुरामां गोचरीए गया ||८|| गाये हराया मुनि पड्या धस्या, वैशाखनंदी पितरिया हस्या । गौ श्रृंगे मुनि गर्वेकरी, गयण उछाली धरती धरी ||९|| तपबलथी हो जो बलधणी, करी नियाणु मुनि अणसणी | सत्तरमे महाशुक्रे सुरा, श्री शुभवीर सत्तर
सागरा ||१०||
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ढाल चौथी
( राग नदि यमुना के तीरे उड़े दोय पंखीया - ए देशी ) अढारमे भवे सात सुपन सूचित सती, पोतनपुरी ए प्रजापति राणी मृगावती । तससुत नामे त्रिपृष्ठ वासुदेव