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[६४] श्री शुभविजय उवझाय जयकर, शिष्यगंग विजय तणो । नय शिष्य पभणे भक्ति रागे, ल.ह्यो आनन्द अति घणो ।।
६ मौनएकादशी का स्तवन के ढालिया
दोहा
शांतिकरण श्रीशांतिजी, विघ्नहरण श्रीपास । वागदेवी विद्या दिए, समरूधरी उल्लास ॥ जादवकुल शिर सेहरो, ब्रह्मचारी भगवंत । श्रीनेमीश्वर वंदीये, तेहना गुण अनन्त ॥
__ ढाल पहली नयरी निरूपम नामद्वारामती दीपतीरे, धनवन्त धर्मी लोक देवपुरी जीपतीरे । यादव सहित गदाधर राज करे जिहारे, उपगारी अरिहंत प्रभु अाव्या तिहारे ॥१॥ अंतेउर परिवार सहित वंदन गयारे, प्रदक्षिणा देइ त्रण प्रभु आगल रह्यारे । देशना दीये जिनराज सुणे सहुभावीयारे, अरिहा अमृतक यण सुणी सुख पावीयारे ॥ २ ॥ हरि तव जोड़ी हाथ प्रभुने एम कहेरे, सकल जंतुना भाव जिनेश्वर तु लहेरे । वरस दिवसमा कोइक दिन भाखीयेरे, थोड़े पुण्ये जेहथी अनन्तफल चाखीयेरे ॥ ३ ॥