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ढाल दूसरी बासठ मार्गणा द्वाररे प्रभुजीए कह्या, सुन्दर सुललित वयणथीए । तेहमा दश द्वाररे मोक्ष जिनेश्वर कद्या, अवरमा नवि लह्याए ॥१॥ तिण कारण दिव्य मोक्षरे, कारण सुख तणा पामे मानव भव थकीए । दुलहो दश द्रष्टांतरे लहिये मनुजभव, हारो मत विषय थकीए ॥२॥ पंच भरत मझाररे पंच ऐरवत, पंच महाविदेहमाँ ए । पनर कर्मभूभीरे नाणी जिनवरे, धर्म कह्यां नहीं अन्यमाए ॥३॥ क्रोध मानने माया लोभ तिम वली, ए चारे दुःख दाईया ए । अप्रत्याख्यानादि करे करता भेद ए, सोल होए तजो भाइआए ॥ ४ ॥ थोड़ा पण ए कषायरे कीधा दुःख दीए, मित्रानन्द तणी परे ए । ते माटे तजो दुररे हृदय थकी वली, जेम अनुक्रमे शिवसुख वरोए ॥ ५ ॥ अष्टमी तिथी आराधेरे अष्ट प्रवचन, माता आराधक कहुं ए । अनुक्रमे लहे निर्वाणरे ए तिथी आराधे, मुक्ति रमणी सन्मुख जुवे ए॥६॥ अभय दान सुपात्ररे अष्टमी पर्वणी, दीजे अढलक चित्तशुए । पामे बहुली ऋद्धिरे परम प्रमोदशु, लीजे लाहो वितशुए ॥७॥
कलश श्री पार्श्वजिन पमाय इणियरे, संवत सतर अढार ए । बैशाख सुदी वर अष्टमी दिन, कुमति दिनपति वार ए ।
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