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मासनी, कीजिए पंचमी सार ललना ।। भ० ॥५॥ तप उजमणुपारणे, कीजिए विधिनो प्रपंच ललना । पुस्तक आगल मूकवा, सघलां वानां पाँच ललना ॥ भ० ॥६॥ पुस्तक ठवणी पुजणी, नवकारवाली प्रत ललना ) लेखण खडीमा दाभड़ा, कवली पाटी जुक्त ललनाभ०॥७॥ धान्य फलादिक ढोइए, कीजिए ज्ञाननी भक्ति ललना । उजमणु एम कीजिए, भावथी जेवी शक्ति ललना ॥ भ० ॥८॥ गरू वाणी एम सांभली, पंचमी कोधी तेह ललना । गुण मंजरी मुगी टली, निरोगी थइ देह ललना ॥ भ० ॥९॥
ढाल चौथी राजा पूछे साधुनेरे, वरदत्त कुमरने अंग। कोढ रोग ए कीम थयोरे, मुज भाखो भगवन्त,
सद्गुरूजी धन्य तमारू ज्ञान ॥१॥ गुरू कहे जंबुद्विपमारे, भरते श्रीपुर गाम । वसुनामा व्यवहारीअोरे, दोय पुत्र तस नाम ॥ सद् ॥२॥ वसुसार ने वसुदेवजीरे, दीक्षा लीए गुरू पास । लघु बंधव वसुदेवनेरे, पदवी दीए गुरू तास ॥ सद् ॥३॥ पंच सहस अणगारनेरे, आचारज वसुदेव । शास्त्र भणावे खंतशुरे, नहीं आलस नित्य मेव ।।सद्॥४॥ एक दिन सूरि संथारीयारे, पूछे पद एक साध । अर्थ कहियो तेहने वलीरे, आव्यो बीजो साध ॥सद्॥शा