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[७९] बंभणों, जई वुझवो रे, एणे ढुकडे गामके ॥गौ०२॥ सांभली वयण जिणंदनु आणंद अंग न माय । गौतम बे कर जोडी, प्रणम्या वीर जिनना पाय ॥ पांगर्या पूरव प्रीतथी, चउनाणी रे भनमाँ निरमाय के गौ०॥३॥ गौतम गुरु तिहाँ
आवीयाँ, वंदवित्रो ते विप्र । उपदेश अमृत दीधलो, पीधलो, तेणे क्षिप्र ॥ धसमस करतों बंभणे, बारि वागी रे थइ वेदन विप्र के गौ०॥४॥ गौतम गुरुना वयणलां, नविर्या तेणे कान । ते मरी तस शिर कृमि गयो, कामनीने एक तान ॥ उठीया गोयम जाणीयो, तस चरीत्रो रे पोताने ज्ञानके ।।गौ०॥५॥
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२ बीज का स्तवन के ढालीया
दोहा सरस वचन रस वरसती, सरसती कला भंडार । बीज तणो महिमा कहुं, जिम कह्यो शास्त्र मोझार ॥१॥ जम्बु द्वीपना भरतमाँ, राजगृही उद्यान । वीर जिणंद सलोपर्या, वांदवा आव्या राजन् ॥२॥ श्रेणिक नामे भूपति, बेठा बेसण ठाय । पूछे श्री जिनरायने, यो उपदेश महाराय ॥३॥ त्रिगड़े बेठा त्रिभुवन पति, देशना दिये जिनराय । कमल सुकोमल पाखंडी, एम जिन हृदय सोहाज ॥४॥