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________________ [७८] ॥१७॥ मुनि मोटा मायाविया रे, वेढीगारा विशेष । आप सवारथ बसी थया रे, ए विंडंबस्ये वेद्यो रे ॥कहे०॥१८॥ लोभी लखपति होयस्ये रे, जम सरिखा भूपाल । सज्जन विरोधी जन हशेरे, नवी लजालु दयालो रे ॥कहे ०।१९।। निर्लोभी निरमाइया रे, सुधा चारीत्रत । थोडा मुनि महियले होसे रे, सुण गौतम गुणवंत रे ॥कहे० २०॥ गुरु भक्ती शिष्य थोडलां रे, श्रावक भक्ति विहीण । मात पिताना सुत नहीं रे, ते महिलाना आधिनो रे ॥कहे०॥२१॥ दुप्पसह सूरि फलगुसिरी रे, नागिल श्रावक जाग । सञ्चसिरी तेम श्राविका रे, अंतिम संघ वखाणयो रे कहे ०१॥२२॥ वरस सहस एक विंशति रे, जिन शासन विख्यात । अविचल धर्म चलावशे रे, गौतम आगल वातो रे ।।कहे.२३॥ दुषमे दुषमा कालनी रे, ते कहिए शी वात । कायर को हैडलोर, जे सुणता अवदातो रे ॥कहे ०॥२४॥ ___ ढाल छठी (राग-पिउडो घर आवे) मुजशु अविहड नेह बाध्यो, हेज हैडा रंगे । दृढ़ मोह बंधण सबल बांध्यो, वज्र जिम अभंग ॥ अलगा थया मुज थकी एहने, उपजसे रे केवल निय अंग के, गौतम रे गुणवंता ॥१॥ अवसर जाणी जिनवरे, पुछिया गोयम स्वाम । दोहग दुखिया जीव ने, आविये आपण काम ॥ देवशर्मा
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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