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[७०] १ दिवाली का स्तवन के ढालिया
दोहा श्री श्रमण सङ्घ तिलकोपमं गौतम, भक्ति प्रणिपत्य पादार विन्दं । इन्द्र भुति प्रभव महंसो मोचकं, कृत कुशल कोटि कल्याणकंदं ॥
_ ढाल पहली ( राग-रामगिरी) मुनि मन रंजणो, सयल दुख भंजणो, वीर वर्धमानो जिणंदो । मुक्ति गति जिम लही, तिम कहुँ सुण सही, जिम होय हर्ष हैयडे आणंदो।मु० १॥ करीय उद घोपणा देशपुर पाटणे, मेष जिम दान जल बहुल वरसी । धण कगण मोतीयां झगमगे जोतीयां, जिन देई दान इम एक वरसी ।मु० २॥ दोय विण तोय उपवास आदे करी, मागशीर कृष्ण दसमी दहाड़े । सिद्धि साम्हा थइ वीर दिक्षा लइ, पाप संताप मूल दूर कहाड़े ॥मु. ३॥ बहुल बंभग धरे पारणु सामिए, पुण्य परमान मध्यान्ह कीधु। भुवन गुरु पारणा पुण्य थी बंभणे, आप अवतार फल सयल लीधु।मु० ४॥ कर्म चंडाल गोशाल संगम सुरो, जिणे जिन उपरे घात मांड्यो । एवड़ो वैर ते पापीया से कर्यो, कर्म कोढि तुहिज सबल दंड्यो ।मु० ॥ सहज