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(३) थाशुं प्रेम बन्यो छे राज, निरवहेशो तो लेखे; में रागी थें छो निरानी अणजुगते होय हांसी; एक पखो जे नेह निर्वहेवो, तेहमां की शाबासी; थाशु० ॥१॥ नीरागी सेवे काई होवे, ईम मनमां नवि आणुं, फले अचेतन मण जिम सुरमणि, तिम तुम भक्ति प्रमाणुं, थाशु० ॥२॥ चंदन शीतलता उपजावे, अग्नि ते शीत मिटावे; सेवकनां तिम दुःख गमावे, प्रभु गुण प्रेम स्वभावे, थाशुं० ॥३॥ व्यसन उदय जे जलधि अनुहरे, शशीने तेह संबंधे; अणसबंधे कुमुद अनुहरे, शुद्ध स्वभाव प्रबंधे; थाशुं० ॥४॥ देव अनेरा तुमथी छोटा, थें जगमां अधिकेरा; यश कहे धर्म जिनेश्वर थांशुं, दिल मान्या हे मेरा थांशं० ॥५॥
(१६) श्री शांतिनाथ स्वामी जिन स्तवन
- (१) शांति जिनेश्वर साचो साहिब, शांति करण इन कुल में, हो जिनजी; तुं मेरा मन में तुं मेरा दिल में, ध्यान धरु पल पल मेंसाहेब जी तुं मेरा० ॥१॥ भवमां भमतां में दरिशन पायो, आशा पूरो अक पल में हो जिनजी ॥तुं मेरा० ॥२॥ निरमल ज्योत वदन पर सोहे, निकस्यो ज्युं चंद बादल में हो जिनजी ॥तुं मेरा ॥३॥ मेरो मन तुम साथे लीनो, मोन वसे ज्युं जलमें-हो जिनजी तुं मेरा ॥४॥ जिनरंग कहे प्रभु शांति जिनेश्वर, दीठोजी देव सकल में-हो जिनजी॥तुं मेरा० ॥५॥