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का२
[ ७७ ] . हारे जस सेवासेंती स्वारथ नी नहि सिद्धि जो,
ठाली रे शी करवी तेहथी गोठडी रे लो। हारे कांई जूठं खाय ते मीठाई ने माटे जो,
काई रे परमारथ विण नहीं प्रोतडी रे लो ॥३॥ हारे प्रभु अंतरजामी जीवन प्राण आधार जो,
वायो रे नवि जाण्यो कलियुग वायरे रे लो; हारे मारे लायक नायक भगतबत्सल भगवान जो,
वारु रे गुण केरो साहिब-सायरु रे लो ॥४॥ हारे प्रभु लागी मुजने ताहरी माया जोर जो,
अगला रे रहयाथी होय ओसिंगलो रे लो; हारे कुण जाणे अंतरगतनी विण महाराज जो,
हेजे रे हसी बोलो छांडी आमलो रे लो ॥५॥ हारे ताहरे मुखने मटके अटक्यु माहरु मन्न जो,
आंखलडी अणीयाली कामणगारडी रे लो; हारे मारां नयणां लंपट जोवे खिण खिण तुज जो, ।
रातां रे प्रभु रुपे न रहे वारीयां रे लो ॥६॥ हारे प्रभु अलगा तो रूण जाणजो करीने हजूर जो,
कहरी रे बलिहारी हुँ जाउ वारणे रे लो; हारे कवि रुप विबुबना मोहन करे अरदास जो;
गिरुआथी मन आणी उलट अति घणे रे लो॥७॥