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सेर नापो गति मुज पंचमी, पंचम प्रभु शीरताज छो, मातमकमल लब्धि विकासी, जहाज श्री जिनराज छो, नयी आशा बांधी में प्रभु अन्य जने तारु ध्यान ॥५॥
( नाथ केसे गजको बन्ध छुड़ायो-अदेशी) सुमति जिन तुम चरणे चित्तदीनो अतो जनम जनम दुःख छीनौ ।' सुमति० ॥ आंकणी ॥ कुमति कुटल संग दुर निवारी, सुमति सुगुन रस भीनो, सुमति नाम जिन मंत्र सुन्यो है मोह निंद भई खीनो, ॥ सुमति ॥ १॥ करम परर्जक बंक अति सिज्या मोह मूढता दोनो, निजगुण भूल रच्यो परगुण में, जनम मरण दुःख लीनो॥ सुमति ॥ २॥ अब तुम नाम प्रभंजन प्रगटयो, मोह अम्र छय कोनो मूढ अज्ञान - अवरति ए तों, मूल छीन भये तीनों ॥ सुमति ॥ ३॥ मन चंचल अति भ्रामक मेरो, तुम गण मकरंद पीनो, अबर देव अब दुर तजत है, सुमति गुपति चित्त दीनो ॥ गुमति० ॥ ४ ॥ मात तात तिरिया सुत भाई, तनधन तरूण नवीनो, ए सब मोह जालकी माया, इन संग भयो है मलीनो ॥सुमति० ॥५॥ दरसण ज्ञान चारित्र तिनों निज गुण धन हर लीनो, सुमति प्यारी भयी रखवारी, विषय इन्दीय भयी खीनो ॥ सुमति० ॥६॥ सुमतिसमता रस सागर, आगर ज्ञान भरीनो, आतम रुप सूमति संग प्रगटे, शम दम दान वरीनो ॥ सुमतिः ॥ ७॥