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[ ५६ ] (५) श्री सुमतीनाथ जीन स्तवन
(१) सुमतीनाथ गुणशु मिलीजी वाधे मुज मन प्रीत तेल बिन्दु जिम विस्तरेजी, जलमांही भली रीत ॥ सोभागी जिनशुलाग्यो अविहड रंग ॥ ए ओकणी ॥ १ ॥ सज्जनशु जे प्रीतडीजी, छानी तेन रसाय, परिमल कस्तुरी तणोजी महीं मांही महाकाय ॥ सोमागी ॥ २॥ अंगुलिए नवि मेरु ढंकाए छाबडीए रवि तेज, अंजलिमां जिम गंग न माए मुज मनतिम प्रभु हेज ॥ सोभागी ॥ ३ ॥ हुओ छिपे नहि अवर अरूण जिम खातां पान सुरंग, पीवत भर भर प्रभु-गुण प्याला तिममुज प्रेम अमंग ॥ सोमागी० ॥ ४ ॥ ढांकी ईक्षु परालशुजी नरहे लही विस्तार, वाचक जस कहे प्रभु तणोजी, तिम मुज प्रेम प्रकार ॥ सोभागी० ॥५॥
सुमतीनाथजी अर्ज उचरु, तुम पसायथी पापने हरु शरण एक छे नाथ ताहरु जिनपति तने वंदना करु ॥१॥ नरक वेदना में लही घणो भव अन्नतमां जीवने हणी जन्म मरणनी वात शी करू, जिनपति तने वन्दना करू ॥ २॥ अन अपराधी ने दूख में दीवां कपट आचरी द्रव्यने लीधों तुम विना हवे पुन्य क्यां करु, जिनपति तने वंदना करू ॥ ३ ॥ अचल देवरे दर्शन आपजो, निबिड पाप नां योध कापजो परम देवरे ध्यान हुँ घरू, जिनपति तने वन्दना करु