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श्री देवचन्दजी कृत
स्नान पूजा
॥पाखंडी गाथा ॥
चौतीसैं अतिशय जुओ, वचनातिशत संजुत । सो परमेश्वर देखि भवि, सिंघासन संपत्त ।
ढाल
सहासन बैठा जगभांण, देखि भवियण गुण मणि खाण।
तुझ निम्मल झाण, लहिये परम महोदय ठाण ॥१॥
कुसुर्माजलि मेलो आदि जिणंदां ॥ तोरा चरण कमल चौबीस पूजो रे, चौबीस सौभागी, चौबीस बैरागी, चौबीस जिणंदा!
(कुसुममांजलि हाथ में लेकर के यानी यह पढ़ते हुए चरणों में टीकी लगानी चाहिये ।)
गाथा जो निज गुण पज्जव रम्यो, तसु अनुभव ए गक्त । सुह पुग्गल आरोपतां, ज्योति सूरंग निरत्त ।।