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( ७ ) त्रोटक छंद
मल्या चोसठ सुरपति तिहां, करे कलश अड जातिना, मागधादि जल तीर्थ औषधि, धुपवली बहु भातिना, अच्युतपतिए हुकम कीनो, सांभलो देवा सवे, खोरजलधि गंगानीर लावो, फटिति जिन महोत्सवे ।। ६ ।।
(ढाल विवहलानी देशी)
राग - प्रभु पार्श्वनं मुखहुँ जोवा ।)
सुर सांभलीने संचरीआ, मागध वरदामे चलीआ; पद्म ग्रह गंगा आवे, निर्मल जल कलशा भरावे ॥ १ ॥ तीरथ फल औषधि लेती वली खीर समुद्र जातां; जलकलशा बहुल भरावे फूल चंगेरी थाला. लावे || २ || सिंहासन चामर धारी, धुपघाणा रकेबी सारी; सिध्घांतै भाख्यां जेह, उपकरण मिलावे तेह || ३ || ते देवा सुरगिरि आवे प्रभु देखी आनन्द पावे; कलशादिक सहु तिहां ठावे भक्ते प्रभुना गुण गावे ॥ ४ ॥
ढाल राग धनाश्री
आतमभक्ते मल्या केई देवा, केता भित्तानुजाई । नारी प्रेर्या वली निज कुलवट, धर्मी धर्म सखाई ॥ जोइस व्यंतर भुवनपतिता वैमानिक सुर आवे | अच्युतपति हुकमें धरी कलशा, अरिहाने नवरावे ॥ अ० ।। १ ।। अड जाति कलशा प्रत्येक, आठ आठ सहस प्रमाणों । चउसठ सहस हुआ अभिषेके, अढी सें गुणा करी जाणो ॥ साठ लाख उपर एक कोडी कलशानों अधिकार । बासठ ईन्द्रतणा तिहां बासठ, लोकपालना चार ॥ अ० ॥ चन्द्रनी पंक्ति छासठ छासठ र वि शशि नरलोकों । गरुस्थानक सुर केरो एकज,