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ढाल एकवीशानी देशी
जिन जनभ्याजी, जिन वेला जननी घरे, तिण वेलाजी, इन्द्र सिंहासन थरहरे; दाहिणोत्तरजी जेता जिन जनमे यदा, दिशि नायकजी, सोहम ईशान बेहु तदा ॥ १ ॥ त्रोटक छंद
तदा चिंते ईन्द्र मनमां, कोण अवसर राबन्यो ? जिनजन्म अवधि नाणे जाणी, हर्ष आनन्द उपन्यो ॥ १ ॥ सुघोष आदे घंटघोषणा सुर में करे "सवी देवी देवा जन्म महोत्सवे आवजो सुर गिरिवरे" || २ ||
नादे
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ढाल ऐकवीशानी देशी
एम, सांभलीजी, सुरवर कोडी आवी मले, जन्म महोत्सवजी करवा मेरु उपर चले; सोहमपतिजी, बहु परिवारे आवीआ माय जिनमेजो, वांदी प्रभु ने वधावीआ ॥ ३ ॥ त्रोटक छंद
वधावी बोले "हे रत्नकुक्षि धारिणी ! तुज सुततणोः हुँ शक्र सोहम नाम करशुं जन्म महोत्सव अति घणो" एम कही जिन प्रतिबिंब स्थापी, पंचरूपे प्रभु ग्रही, देव देवी नाचे हर्ष साथे, गिरि आव्या सही ॥ ४ ॥
ढाल एकवीशानी देशी
मेरु उपरजी पांडुक वन में चिहुँ दिशे, शिला उपराजी, सिंहासन मन उल्लसे; तिहां नेसीजी, शक्रे जिन खोले धर्या, हरि त्रेसठजी, बीजा तिहां, आवी मल्या ॥ ५ ॥