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मुद्रा पण तेहमा नवि दीसे प्रभु, तुज महिली तिलमात्र रे, जे देखी दीलडु नवि रीझे, शी करवी तस वाल नारे० ॥३॥ तुगति तुमति तु तु मुज प्रीतम, तु जीव जीवन आधारो रे रात दिवस सुपनांतर मांति, तुमारे निरधार नारे० ॥४॥ अवगुण सहु उवेखीने प्रभु, सेवक करीने निहाल रे, जगबंधव ए विनति मारी, भवोभवना दुःख ताल नारे० ।।५।। चोवीशमा प्रभु त्रिभुवन स्वामी, सिद्धारथनाथ नंद रे; त्रिशलाजीना नानडीया प्रभु, तुम दीठे अतिही आनंद नारे० ॥६॥ सुमति विजय कविराजनो रे, रामविजय कर जोड रे; उपकारी अरिहंतजी मारा भवोभवना बंद छोड नारे० ॥७॥
(१०) आवो आबो हे वीर स्वामी मारा अंतरमां मारा अंतरमां पधारो मारा अंतरमां- आवो० मान मोह माया ममतानो मम अंतरमां वास, जब तुम आवो त्रिसलानन्दन, प्रगटे ज्ञान प्रकाश-आवो० आत्म चन्दन पर कर्म सर्पनु, नाथ अतिशय जोर, दूर करवाने ते दुष्टोने, आप पधारो मोर-आवो० माया आ संसार तणी बहु वरतावे केर, श्याम जीवनमां आप पधारो, थाये लीला लहेर-आवो० भक्त आपना शेठ सुदर्शन; चढया शुलीए साच, आप कृपाए थ' सिंहासन, बन्या देवना ताज-आवो०