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[ १०२ ] वरसी दान दे रोरता वारी, संयम राज्य उपायो, दीन हीनता कबुय न तेरे, सद् चिद् आनंद रायो; ॥ चरम० ।।२।। करूणा मंथर नयने निहारी, चंडकोशिक सुखदायो; आनन्दरस भर सरगे पहूँतो, असा कोन करायो ।चरम ० ॥३।। रत्नकंबल द्विजवरको दीनो, गोशालक उधरायो; जमाली पन्नर भव अंते, महानन्द पद ठायो । चरम ०॥४॥ मत्सरी गौतमको गणधारी, शासन नायक ठायो; तेरे अवदात गिनु जग केते, तुं करूणासिंधु सुहायो ।चरम०५।। हुँ बालक शरणागत तेरो, मुजको क्यं विसरायो; तेरे विरह से हुं दुःख पामु, कर मुज अलमरायो ।चरम ॥६॥
वीर जिणंद जगत उपकारी, मिथ्याधाम निवारीजी, देशना अमृत धारा वरसी, परपरिणति सवि वारीजी-वीर ०॥१॥ पंचमे आरे जेहनुशासन, दोय हजारने चारजी; युग प्रधान सूरीश्वर वहशे, सुविहित मुनि आधारजी-वीर०॥२॥ उत्तम आचारज मुनि अज्जा, श्रावक श्राविका अच्छजी, लवण जलधि माहे मीठू जल, पीवे सोंगी मच्छजी -वीर ॥३।। दश अच्छे रे दुःषित भरते, बहु मतभेद करालजी, जिन केवली, पूरवधर विरहे, फणीसम पंचम कालजी-वीर०॥४॥ तेहनु झेर निवारण मणिसम, तुज आगम तुज बिंबजी,
निशि दीपक, प्रवहण जेम दरिये, मरुमां सुरतुर लंबजी वीर०॥५॥ . जैनागम वकता ने श्रोता, स्याद्वाद शुचि बोधजी,