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श्री नाकोडा स्वामी अन्तरजामी तारो पारस नाथ । अश्वसेन जी का लाडलारे, बामा देवी नो नन्द, श्याम वरण सुहावणारे मुखडो पुनम चन्द || ना० ॥ आगे भक्त अनेक उवारे, अब प्रभुजी मोहे तार, तारक नाम धरायो स्वामी, अपना विरूध संम्भाल || ना० ॥ मैं अपराधी भौगुण भरिबो, माफ करो महाराज, दीनदयाल दया करो मोपे, सारो बंछित काज ॥ ना० ॥ अरजी लीजो दरशन दीजो, मुजरो लीजो मान, करुणा सागर करूणा कीजो, अर्ज करे छे "कान" ॥ना०॥ ( ११ )
पार्श्व प्रभुजी रे, बिनती मेरी मानना ॥ पा० १ ॥ अति दुख पाया मैंने, मोह के राज में,
लख चौरासी रे, योनि में जहाँ घूमना || पा० २ ॥ फँस रहा हूँ, मैं तो, कर्मों के घेर में,
चार गति के रे, दुखों को पड़े भेलना ॥ पा० ३ ॥
भटक रहा हूँ प्रभु, अँधेरी रैन में,
ज्योति जगा दो रे, टले ज्यूं मेरा रूलना ॥पा० ४ ॥ सम्यज्ञदर्शन ज्ञान के राज में,
चरण मिला दो रे, स्वामी जी नहीं भूलना । पा० ५ ॥ आत्म कमल में जिन रहो दिल में,
लब्धिसूरी का रे, हटा दो जग भूलना ॥ पा० ६ ॥