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सुनिये श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ,
____ तोसे बिनती करत महाराज ॥ सु०॥ जलती अग्नी से नाग निकाल्यो,
संभलायो नवकार ॥ सु० १॥ जग विख्यात तुमरो यश गावे, भविजन के सिरताज । दोन दयाल कृपा करो स्वामी, तुम्हारे चरण आधार । ज्ञान चन्द्र विनवे भक्ति से, तारण तरग जहाज ॥सु०२॥
[८] अब मोहें तारो पारसनाथ । अश्वसेन बामाजी के नन्दन, तीन भुवन के नाथ ॥ अ० ॥ पोष बदी दशमी दिन जायो; दिशि कुमरी संग साथ ।। अ० ॥ सेवक की अरजी पर मरजी लज्जा तुम्हारे हाथ ॥ १० ॥
बिना प्रभु पार्श्व के देखे, मेरा दिल बेकरारी हे चौरासी लाख में भटक्यो बहुत सी देहधारी है धेरा मोह कर्म आठों ने गले जंजीर डाली है ।बि०१॥ दुनिया के देव सब देखे, सभी को लोभ भारी है कोइ रागी कोई द्वषो, किसी के संग नारी है ॥बि०२ ॥ मुसिबत जो पड़ी हम पे, सभी तुमने निवारी है सेवक को कुमति से टारो, यही विनती. हमारी है ।बि० ३॥