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..[ ८२ ] चतुर चकोर पराभव निरखत बहु रे चूनत अंगारे ।।३।। उपशम रसके अजब कटोरे मानुविरंची संभारे ॥४॥ कितिविजय वाचक को विनयी कहे मुज को अति प्यारे ॥५॥
(८) माएं खोयुं में प्रभु सघलुं प्रमादमा पाछु ते केम मेलवाय रे, शान्ति जिन मार्ग बतावजो ॥१॥ ज्ञान खोयुं ने वली दर्शनपण खोयु
चारित्र केम मेलवाय रे ॥शांति जिन० ॥२॥ सुखना उपायो मने साचा नथी सुझता
___ सुखीया ते केम थवाय रे ॥शांति जिन० ॥३॥ आपी अशांति चाहुं शांति मेलववा
ते केवी रीते पमाय रे ॥शांति जिन० ॥४॥ आनंद माटे कहो, मारे शुं करवं,
आनंदघन जिनराय रे॥शांति जिन० ॥५॥ आत्म उचोतं माटे इच्छा घणी छे ___ कस्तुर कहे केम थाय रे ॥शांति जिन० ॥६॥
(६) सोमेश्वर स्वामी अंतरयामी, तारजो दीन दयाल । विश्वसेन घर विश्वपति रे अचिरा माता उदार । शांति करी सब देश में मृगी मरी निवार हो । सो० ।। लख वर्ष की आयु पुरी, मृग लंछन साधीर । स्पच्चस धनुष की देह दीपे, सोवन वर्ण शरीर हो ।। सोः ।