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वाधे
नेह नजरे निहालतां रे, बमणो वान अखूट खजानो प्रभु ताहरो रे, दीजीए वांछित दान ॥४॥ आश करे जे कोई आपणी रे, नवि मूकीए निराश; सेवक जाणीने आपणो रे, दीजीए तास विलास ॥५॥ दायकने देतां थकां रे क्षण नवि लागे वार; काज सरे निज दासनां रे, ए म्होटो उपकार ||६|| एवँ जाणीने जगधणी रे, दिल मांही घरजो प्यार; रुपविजय कविरायनो रे, मोहन जय जयकार ॥७॥
( ६ )
श्री शान्तिनाथ महाराज अरज सुन मेरी
तुम रखो हमारी लाज शरण गत तोरी। श्री शान्तिनाथ० दरसण कि लग रहि आश कच्छु न सुहावे
दिन रेन पड़त नहि चैन नीन्द नहिं आवे । श्री शान्तिनाथ
एक पाटणपुर, श्री जग मे नाम कहबावे,
श्री शान्तिनाथजी को ध्यान, अमर पद पावे । श्री शान्तिनाथ • गावे,
एक गौरीलाल, लख चौरासी मे फेर,
कबहू नहिं आवे । श्री शान्तिनाथ •
७ )
चंपालाल गुण सुत
शांति तेरे लोचन
हे
अनियारे
कमल ज्युं सुन्दर मीन ज्यु ं चंचल मधुकर थी अतिकारे ॥ १ ॥ जाकी मनोहरता जित वनमें कीरते हरिन - बिचारे ॥२॥