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________________ ६. ८. १२] सुदंसणचरिउ पहिलउ सिक्खावउ होइ एम वीयउ आयण्णहि कहमि जेम । उववासु अहव णिव्वियडि जाणु लुक्खाहारंबिलु अद्धमाणु। सिंगारविवजणु भूमिसयणु चउपव्वहिँ कीरइ णिहयमयणु । तिजन सिक्खावण पत्तदाणु दिज्जइ णियसत्तिन सुहणिहाणु। सो पत्तु वि तिविहु जिणेहि सिङ उत्तमु तह मज्झिमु अह कणिहु । रयणत्तयपावियं परमलाहु वयवंतउ उत्तमु पत्तु साहु । जो सावउ सो मज्झिमुणिरुत्तु अविरयसम्मत्ते हीणु पत्तु। . दिढयरमिच्छत्तमएण मत्तु - अक्खिउ संखेवे सो अपत्तु। घत्ता-तिविहही पत्तही दाणेण तिविहु फलु लब्भइ। . जिह पुरिसंतरसंगेण सीलु पवियंभइ ॥७॥ अग्गिल णाम बंभणी दुहणिसुंभणी देवि पत्तदाणं । जक्खकडक्खलक्खिणी जाय जक्खिणी संस सुरणराणं ॥ पत्तदाणमाहप्पविसेसे रयणविट्टि लद्धी सेयंसे।.. इय मुणेवि परउत्तमपत्तही दिजइ दाणु सीलसंजुत्तही। जिणहर अहव पंथे अहपंगणे करवि तासु पडिगहु तोसियमणे । ५ सुइपएसे उच्चासणु दिज्जइ पायंबुरुहजुयलु धोविजइ। जलु वंदिवि विहिणा अंचिजइ पणविजइ तिसुद्धि भाविजइ । एम दाणु जं दिजइ अवियलु वडवीउ व हवेइ तं बहुफलु। विहलु जाइ कह दिण्णु अवत्त वविउ वीउ जह ऊसरछेत्तष्ट। कंचणमणिगणोहु सयणासणु घणु कणु भवणु असणु तह णिवसणु। १० दीणहँ दुत्थियाहँ जं दिजट तं कारुण्णदाणु पभणिजट। चयवि संगु सण्णासु करेवउ वुत्त चउत्थु एहु सिक्खावउ । ७. २ घायाणहि । ३ ख कहिमि । ४ ग घ जासु। जिणहरि जाइजइ अरुह तासु । ५ ख रुक्खा । ६ क वड्ढमाणुः ग घ वत्थुमाणु । ७ ख जुत्तय। ८ ग घ सावउ मज्झिमु मुणि।- १ ख विविहु वि । ८. १ घ तमणिसुं। २ क ग घ जणे। ३ ख ज ग घ किह। ४ ख प्रपत्तइ। ५ वाविउ वीउ जहोसरछेत्तए।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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