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६. ३.५]
सुदंसणचरिउ
पिप्पलदुविह उंबरा' सवड फिफरा सुहुमतससमिद्धा । इय पंच वि ण खजहिणेय दिजहि आगमे णिसिद्धा ॥
संधिजंत भज्जगुणंतत्र। सुहुमइँ सत्तइँ होंति बहुत्तइँ । तं जो घोट्टइ सो गरु लोह। गायइ णच्चइ सुयण शिंदई। कविलइँ वंदइ विहसइ कंपइ । अभणिउ जंपइ रंगइ वग्गइ । जुवइहि लग्गइ माउ जि संगइ । भउहउ वंकइ गजइ रिंकइ । पडइ विहत्थही रत्थहिँ कत्थह।।। छेरइ हेरइ दारइ मारइ। रुज्झइ बज्झइ जुज्झई मुज्झइ । मुच्छाजुत्तही मंडल मुहे तहो ।
मुत्तहिँ लंधवि पुणु पुणु सुंधवि । घत्ता-मजही पाणे जायवकुलु सयलु समत्तउ ।
दुक्खपरंपर तह चारुदत्तु संपत्तउ ॥२॥
मजहाँ दोस अक्खिया तुह ण रक्खिया संपइ वणीसा। इह सुपसिद्ध जारिसा कहमि तारिसा गिसुणि मंसदोसा ॥ आरणालं ॥ सुक्कसोणिएहिँ जाउ....
होइ मंसु पसुवहाउ। दिस्समाणमवि' विहत्थु जिणवरागमे दुगंछु। तम्मि जीव संभवंति
दिट्ठिगोयरा ण होति ।
२. १ क उंबेरु। २ क दिजइ। -३ ग घ उढइ वच्चइ। ४ ख रट्टइ वंचइ गायइ णच्चद।-५ करकइ ( टि. रंको भवति)। ६ क डज्झइ। ७. ख बज्झइ जुझड मुज्झइ कुज्झइ। ८ क मुत्तिविः ख मुत्तिहिं । ६ ख सयलु वि।
३. १ क दिस्समाण सा, ख दीसमाणु म वि।