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संधि ४
कुलु बलु पगुणु पंडित्तगुणु रूवलच्छि जसु णिम्मलु । आरोगत्तणु सोहग्गु पुणु इय महंतधम्मही फलु ॥ध्रुवकं ।। पुरि हिंडतो जिणमइपुत्तो पेच्छइ कविलं गुणगणविमलं। अइसयरम्मं कयछक्कम वेयवियाणं णिञ्चसुण्हाणं । वंदियसोत्तं दियगुरुभत्तं पुज्जियसिहिणं तिलजवहुअणं। चंदणलित्तं पंडुरगत्तं
खंध तिसुत्तं कयसिरछत्तं । मुणियणिमित्तं दयदमचित्तं पियरायत्तं धम्मासत्तं। वियसियवत्तं गेलणेत्तं इय गुणजुत्तं दि8 मित्तं । वणिवइउत्तो भूसियगत्तो णेहणुलग्गो कंठविलग्गो। हरिसविसट्टो छुडु जि पयट्टो जा ता अग्गे आवणमग्गे। तणुसोमाला दिट्ठा बाला दुवई एसा मयणविलासा । घत्ता-जा लच्छिसम तह का उवम जाई गइट सकलत्तइँ।
णिरु णिज्जिय िणं लज्जियइं हंसइँ माणसि पत्तइँ ॥१॥
जाहे चरण सारुण अइकोमल जाहे पायणहमणिहिँ विचित्तई जाहे गुप्फगूढिमय विहप्फइ' जाई लडहजंघहिँ ओहामिउ जाह णियंबविंबु अलहंते
पेच्छेवि जले पइट्ठ रत्तुप्पल । णिरसियाइँ णहे ठिय णक्खत्तइँ। उवहसियउ विसेसमइविप्फई। रंभउ णीसारउ होगवि थिउ । परिसेसियउ अंगु रइकते।
१. १ क विणयविनाणं। २ ख हवणं। ३ क सुणिय। ४ क ग घ पियरासत्तं । ५ ख जाहि गयई।
२. १ क वियप्पई ग घ वियप्फइ। २ ख उवहसियइ । ३ क ख विप्पइ ।