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नयनन्दि विरचित
[ ११. 5. किया। इस प्रकार विहार करते हुए, तप से तपाए हुए सुदर्शन मुनि पाटलिपुत्र नगर में आकर पहुँचे। वहाँ वे मुनिराज कुसुमपुर में चर्या ( भिक्षाचर्या ) के लिए प्रविष्ट हुए । तब धवलगृह के ऊपर चढ़ी हुई पंडिता ने उन्हें अकस्मात् देखा ।
८. पंडिता ने देवदत्ता को सुदर्शन का परिचय कराया
उस विदुषी ने मुनिराज को देखकर, मुस्कुराते हुए अपने हाथ की अंगुली से बालमृगनयना देवदत्ता को संकेत दिखाकर कहा - " यही वह है जो चंपानगरी में प्रसिद्ध हुआ । यही है वह जिनदासी का पुत्र । यही है वह, जिसने उस नगर में क्षोभ उत्पन्न कर दिया था । यही उस सुन्दरी मनोरमा का पति है । यही वह कपिल भट्ट का परम मित्र है । और यही है वह, जिसने कपिला से छल किया था । इसी में अभया ने अपना मन आसक्त किया था । और इसी को मैंने घर में लाकर डाल दिया था । यही है वह, जो उसके वश में नहीं आया और यही है जो अपने शरीर की आसक्ति छोड़ ( ध्यान में ) स्थित रहा । इसी मरवा डालने के लिए भेजा गया, और वह अपने पुण्य के कारण किसी प्रकार बच गया । इसी को राजा ने राज्य दिया, किन्तु यह परमकार्य ( मोक्ष -साधन ) केही चिन्तन में लीन रहा । यही है वह जो अपने सौन्दर्य से कामदेव है, और यही वह है, जो अभया के मरण का कारण हुआ । यही है वह, जो उसी समय श्रमण हो गया । यही है वह, जो गुणरूपी रत्नों की राशि है । यही है वह, जिसके कारण मैं वहां से भागी । और यही है वह जिसके लिए तू म्लान हुई है । यही वह महागुणशाली है, जिसके ऊपर तू बार-बार अपना गर्व करती है ।" इन वचनों को सुनकर गणिका ने अपनी दासी को अपने पास से - " शीघ्र ही प्रासाद के नीचे मुनि को ठहरायो,” ऐसा कह कर भेजा ।
९. रत्नखचित कपाटों को देख सुदर्शन मुनि का वैराग्यभाव
फिर मणिरत्नों से खचित दृढ़ व कठिन कपाटों के पल्लों को देखकर, मुनिवर जिन - प्रतिमा योग में स्थित हुए चिन्तन करने लगे - " जो मित्र कपट करे, उससे क्या लाभ? वह कैसा सज्जन, जो दूसरों का उपहास करे ? वह कैस राजा, जो लोगों को संताप दे ? वह कैसा स्नेह, जो अप्रिय प्रगट करे ? पापकारी धर्म की प्राप्ति से क्या लाभ? ऊसर क्षेत्र में बीज बोने से क्या ? सौन्दर्य-विहीन कमल कैसा ; व कलंक लगा मनुष्य कैसा ? वह फूल कैसा जो गंधरहित हो, और वह शूर कैसा जो समर में पराजित हो ? जो सौंपे कार्य में शंका करे, वह सेवक कैसा ? और वह तुरंग कैसा, जिसका उरस्थल ढका हुआ हो ? कृपरण के हाथ में पड़े हुए द्रव्य से क्या लाभ ? वह कैसा काव्य, जो लक्षणों ( व्याकरण शुद्धि व अलंकार आदि साहित्य के गुणों) से दूषित हो ? नीरस ट के नृत्य से क्या लाभ? वह कैसा साधु जो इन्द्रिय- लंपट हो ? जिस प्रकार अनि तृण व काष्ट से, तथा सागर लाखों नदियों से तृप्ति नहीं नहीं पाता, उसी प्रकार तृष्णातुर जीव भी भोगों से संतुष्ट नहीं होता ।