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सुदर्शन-चरित अवसर पर वहाँ एक व्यन्तर आ पहुँचा। शत्रु और मित्र, कहो किसका दिखाई नहीं देता ? उस व्यन्तर ने उन समस्त भटों का स्तम्भन कर दिया और उनके तलवारों के प्रहारों को पुष्पमालाओं जैसा कर दिया। तब आकाश में देवों को
आनन्द हुआ और उन्होंने जय-जय ध्वनि के साथ पुष्प-वृष्टि की। देवों द्वारा आकाश में ताड़ित दुंदुभी बजने लगी, मानों जीवलोक में इस प्रकार घोषणा कर रही हो कि यदि अपने मन में राग और द्वेष का त्याग करके लेशमात्र भी व्रतों का पालन किया जाय, तो देवों और मनुष्यों की पूजा प्राप्त करना तो आश्चर्य ही क्या, निर्दोष और पूज्य मोक्ष भी प्राप्त किया जा सकता है। उत्तम सम्यग्दर्शन रूपी आभूषण को धारण करनेवाले भव्यजनों द्वारा जिनेन्द्र का स्मरण करने पर, उनका समस्त पाप शीघ्र ही उसी प्रकार नष्ट हो जाता है, जिस प्रकार सूर्य के उदित होने पर अन्धकार ।
४४. धर्मध्यान का प्रभाव
अति दुर्द्धर, अंजनपर्वत के समान कृष्णकाय, दिग्गजों को भी त्रासदायी, मेघ के समान गर्जना करनेवाला उन्मत्त हाथी, उस पर कोई आघात नहीं कर सकता जो अपने मन में जिनेन्द्र का स्मरण कर रहा हो ॥१॥ सोकर उठा हुआ, गज का अभिलाषी, महाबलशाली, लोलुपता से जीभ को लपलपाता हुआ, सक्रोध मृगेन्द्र भी उस पर अपने पंजे का आघात नहीं कर सकता, जो अपने मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण कर रहा हो ॥२॥ तमाल वृक्ष के सदृश झपड ( विकराल ) शिरवाला, सूर्य के समान भीषण नेत्रों से युक्त, रौद्र पिशाच भी उसपर प्रसन्न हो जाता है, जो अपने मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण कर रहा हो ॥३॥ अपनी बढ़ती हुई तरंगों से आकाश का भी व्यतिक्रमण करनेवाला, जलचर जीवों द्वारा प्रकाशित कोलाहल से युक्त अथाह समुद्र भी उसके लिए गोपद मात्र हो जाता है, जिसके मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण हो ॥॥ अपने चमचमाते फणमणि के द्वारा दिगन्तों को निरुद्ध करनेवाला, यम के समान त्रैलोक्य के लिए क्षयंकर, क्रूर फणीन्द्र भी उलटकर उसको नहीं डसता, जिसके मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण हो ॥५॥ दुःसंचार नदी में, दुर्गम पर्वत पर, असंख्य वृक्षों से युक्त भीषण मार्ग में कहीं भी चोर-डाकुओं का गिरोह उसपर लग नहीं सकता, जिसके मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण हो ॥६॥ घृत से सिक्त के समान तीव्रता से जलता हुआ, जगत्त्रय को अपनी ज्वालाओं से निगलता हुआ अग्नि भी उसके लिए चन्द्र के समान शीतल हो जाता है, जिसके मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण हो ॥७॥ जिसकी ओर से बांधवों और सज्जनों ने अपनी आंखें मींच ली हों, जो अनेक प्रकार से दुःखदायी हो, ऐसा सांकलों का बंधन भी उसका विघटित हो जाता है, जिसके मन में देवों के इन्द्र जिनेन्द्र देव का स्मरण हो ॥८॥ मनोहर इन्द्रियों के सुखों को नष्ट करनेवाला भगंदर, शूल, श्लेष्म, आदि व्याधियों से युक्त रोग भी उसका मंद