________________
८.११] सुदर्शन-चरित
२१३ ९. भवितव्यता टल नहीं सकती इस संसार में गीध श्मशान से पृथक् नहीं हो सकता। भौंरा पङ्कज पर बैठे बिना नहीं रह सकता। तुम्बर और नारद का गीत छूट नहीं सकता। पण्डित लोगों का विवेक भ्रष्ट नहीं हो सकता। दुर्जन का दुष्ट स्वभाव छूटता नहीं, और निर्धन के चित्त का विषाद दूर होता नहीं। महाधनवान का लोभ नहीं छूटता। यम की मारने की बुद्धि नष्ट नहीं हो सकती। यौवन में अभिमान आये बिना नहीं रहता, और वल्लभ में चिपटा हुआ चित्त हट नहीं सकता। महान हाथियों का अँड विन्ध्य पर्वत को नहीं छोड़ता। सिद्धों का समूह मोक्ष से हटता नहीं। पापी के पाप का कलंक मिटता नहीं। कामी के चित्त से काम छूटता नहीं। इसी प्रकार इस रानी का दुराग्रह छूटनेवाला नहीं। ( यह मौक्तिकदाम छंद है ) अथवा जो कुछ, जिस प्रकार, जिसके द्वारा, जहाँ अवश्य होनेवाला है, वह उसी प्रकार, उसी देहधारी के द्वारा, वहीं पर एकांग रूप से घटित होकर ही रहेगा।
१०. दुर्भावना की जीत वार वार कितनी चिंता की जाय और कितना वार वार झुरा जाय ? इस वसुधाधिप पत्नी ( राजरानी ) का दोष भी क्या है, जबकि त्रैलोक्य ही भवितव्यता के अधीन है ? तो लो, मैं भी इस शरीर-लावण्य के वर्ण से शोभायमान इस सुन्दरी की अभ्यर्थनानुसार करती हूँ। जिसकी अनुचरी होकर रहना, उसी की इच्छानुसार चलना भी चाहिये । ऐसा सोचकर फिर पण्डिता ने कहा-हे सुन्दरि, धैर्य धारण कर, जबतक मैं जाकर उस उत्तम वणिक् को लेकर आती हूँ। वह तेरे उर पर लटकता हुआ हार बनकर रहे। ऐसा कहकर पण्डिता वहाँ गई, जहाँ प्रजापतियों ( कुम्हारों) के घर थे। वहाँ जाकर उसने एक चक्का चलाने वाले कुम्हार से कहा कि मुझे मिट्टी के अच्छे सात पुतले बना दे। आज रात को अभयारानी अपने कामदेव व्रत को सफल करेगी, और उसके माहात्म्य से वह अपने दुर्लभ मनोवांछित फल को प्राप्त करेगी।
११. पंडिता द्वारा पुतलों की कल्पना __ तब उस चक्र चलानेवाले कुम्हार ने पुतले बनाये और उन्हें पण्डिता के आगे लाकर रखा। वे ऐसे प्रतीत होते थे, जैसे मानों ब्रह्मा ने स्वयं उन्हें घड़ा हो। मानों स्वर्ग से सात सुर आ गिरे हों। वे सातों मानों हर्षितांग होकर खेल रहे हों। मानों सातों चल रहे हों, डोल रहे हों, व भ्रमण कर रहे हों। सातों मानों रंगरेलियाँ कर रहे हों, मानों थिरक रहे हों। सातो मानों कनखियाँ ले रहे हों, हँस रहे हों। सातों मानों हाथ से हाथ पीट रहे हों। सातों मानों ज्ञान का विचार कर रहे हों; गुन रहे हों। सातों मानों अभया के विकल्प को जान रहे हों, और सातों मानों अपना सिर धुन रहे हों। सातों मानों वणिक् के