________________
७. १० ]
सुदर्शन-चरित
२०३
हथेली रक्ताशोक के पत्तों के समान सुन्दर है । जिसके अधर बिंबाफल सदृश व दांत अनार के दानों के समान सुन्दर और आनन्ददायी हैं। जिसकी सुन्दर नासिका चम्पकपुष्प के समान, आंखें फूली हुई कुमुदनी के पत्र समान, मुख कमल सदृश व केशबन्ध मयूरपिच्छ के समान लोगों के मन को उद्दीपित करनेवाला है । जो चन्दन और केशर से सुन्दरवर्ण दिखाई देती है । जो तिलक और अंजन से
भूषित है। जो कर्पूररस से ओतप्रोत है । जिसकी बहुत से प्रेमीजन सेवा करते हैं । जो हरिवाहन है, कंचनवर्ण है, सुमंडित है, और कोकिला के ललित आलाप सदृश सुभाषिणी है । ऐसे गुणों से परिपूर्ण वह वनपंक्ति वा विलासिनी किसके हृदय को यथार्थतः हरण नहीं करती ? ( यह स्पष्टतः कामलेखा नामक पद्धडिया छंद का प्रयोग है ) । राजा के आगमन से वह वनपंक्ति अपने तृणों द्वारा तन से रोमांचित प्रतीत होती थी, और अपने नये पुष्पों और फलों से मानों पूजांजलि प्रस्तुत कर रही थी ।
९. रानी द्वारा मनोरमा की प्रशंसा
तब सुख-क्रीडा में दक्ष व नानाप्रकार के भावों व युक्तियों को लक्ष्य करनेवाली सखियों सहित, सागरसेन की पुत्री सुन्दर लीला द्वारा ऐसी शोभायमान हुई, जैसे पृथ्वी विकासमान उत्तम क्रीडाओं के योग्य एवं विविध प्रकार के दृश्यों व लाखों संयोगों से पूरित दिशाओं से युक्त होकर शोभा धारण करती है । उसे आगे जाते हुए देखकर लक्ष्मी द्वारा सेवित अभया महादेवी ने उसकी प्रशंसा की“अपने बान्धवों व सुहृद्जनों की आंखों को सेंकने वाली, श्रेष्ठ गुणों की भाजन यह युवती बड़ी पुण्यवती है" । इस बीच कपिला ने कहा - "हे देवि, तुम्हें ऐसा कहना योग्य नहीं । लावण्य और सौभाग्य में तुम्हारे समान उत्तम रंभा और तिलोत्तमा भी नहीं है । मेनका, शची व पौलोमी, ये सब अप्सराएँ भी तुम्हारे वैभव के सामने निरभिमान हो जाती हैं । तुम्हारी बुद्धि की तुलना में सरस्वती भी पूरी नहीं उतरती" । यह सुनकर अभया बोलो - " हे सखि, मेरी क्या प्रशंसा करती है; पुत्र के विना नारी की क्या शोभा है ? पुत्र ही तो एक कुलरूपी गगन का सूर्य तथा माता के मानरूपी रत्न का रत्नाकर होता है । यदि वह ( अपनी उत्पत्ति द्वारा ) यौवन का खंडन करता है, तो भी स्त्री के लिए पुत्र परम मंडन है । इसलिए इसकी ही श्रेष्ठ प्रशंसा करना योग्य है, क्योंकि वह पुत्रवती है, व अपने पति की अनुरागिणी है" । तब कपिला ने कहा - " इसके पुत्र कहां से हुआ ? इसका पति तो नपुंसक है, ऐसा मैंने किसी के पास से सुना है ।"
१०. रानी द्वारा कपिला का मर्म- ज्ञान
इस पर हँसकर फट रानी ने कहा कि वह कुछ नहीं जानती, बड़ी अज्ञान है । वह वणीन्द्र में आसक्तमन होकर उत्तेजित हुई होगी, इसीलिए उसने हास्य से ऐसा