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नयनन्दि विरचित
[६. १२क्षुद्रकाय, कर्कश-स्वर, कृष्णशरीर, रक्तनेत्र, यमराज जैसे दीर्घदंत, वक्रमुख, छिन्न-ओष्ठ, उर्ध्वकेश, स्थूल-नास, कनफटे, फटेपांव, काने, ठूठे ( हथकटे ) लँगड़े, मंट (बौने ), हिंसा के स्थान, मांसभक्षी, पापकर्म और हीनकर्म होते हैं; और हा हा श्वासें भरते हैं ( दुःख से संतप्त होते हैं। तो भी वे जीवन भर न धर्म लेते और न पाते। जहां कुछ सुख देखते हैं, वहां जाते हैं, और खान-पान मांगते हैं। वे चंडिका देवी के आगे जाकर पड़ते हैं, और गिड़गिड़ाते हैं:हे देवि, आ, और कुछ कार्यसिद्धि दे। किन्तु उन मानवों को कोई पुण्यलब्धि तो है नहीं ( अतएव वे पावें कैसे ?) ( इसे कामबाण छंद जानो)। पुण्यहीन मनुष्य अहर्निश उद्यम करके अपने को संतापित करता है, तो भी अणुमात्र भी सुख नहीं पाता।
१२. रात्रि भोजन का फल दरिद्रता वे लक्ष्मी से विहीन मनुष्य जीर्ण कोपीन धारण किए हुए, करुणा के पात्र, हाथ में लाठी लेकर भीख माँगते हुए महीतल पर भ्रमण करते हैं। वे सूखी-रूखी भिक्षा भी नहीं पाते। वे प्रेषण ( चाकरी) करते हैं, कुछ भी ले जाते हैं; ( बोझा ढोते हैं ), गर्जना सहते हैं, पानी भरते हैं, घर झाड़ते-बुहारते हैं, दोनों पैरों को नमस्कार करते हैं; तब कहीं कुछ धान्य का भुसा पाते हैं, उसे चूर्ण करके पकाते हैं, और घर के कोने में बैठकर खाते हैं। बालक उनकी हँसी उड़ाते हैं। वे अघाते नहीं, क्लिष्ट जीवन व्यतीत करते हैं, क्रन्दन करते हैं, और अपना सिर धुनते हैं। रुष्ट होकर चल देते हैं, और देशभर में घूमते हैं। धन की अभिलाषा करते हैं, किन्तु आर्तध्यान से ही मरते हैं। ( इसे स्पष्ट चन्द्रलेखा छंद मानो )। ऐसा जानकर जो रात्रि-भोजन का त्याग कर देते हैं, वे दोष-मुक्त होकर सूर्य के समान उद्भासित होते हैं।
१३. रात्रि-भोजन-त्याग से उत्पन्न सुख रात्रि-भोजन-त्याग का व्रत पालने वाले संपूर्णाग-मनोहर, विमल यशधारी, सूर्य के समान तेजस्वी, सहस्रों आपत्तियों से रहित, देवों द्वारा पूज्य इन्द्रोपम होते हैं। वे शरीर से सुन्दर, मेरु के समान सुधीर, भीषण समरांगण में अद्वितीय वीर, अस्खलित प्रताप, गम्भीरध्वनि, त्रैलोक्यप्रसिद्ध महानुभाव होते हैं । वे अपने शत्रओं के कृतान्त ( काल ), महाऋद्धिवान, मकरध्वज के समान सौभाग्यशाली होते हुए दर्पोद्भट व जयश्री-लंपट, सशस्त्रभटों द्वारा सेवित होते हैं। वे मद से धूमते हुए मन्थरगति, सुलक्षण गजवरों पर आरूढ़ होते हैं। उन पर देवों को भी सन्तोष देनेवाले दैदीप्यमान नाना चँवर ढोले जाते हैं। जनमनोहारी, मधुर-स्वर, सैकड़ों श्रेष्ठ गायक उनका गान करते हैं, तथा मनमोहक गजगामिनी भामिनियां उनका सम्मान करती हैं। और भी जो कुछ इस संसार में निर्दोष ( सुख ) दिखाई देता है, उस सबको, हे सुन्दर, अनस्तमित व्रत का ही फल जानो।