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१७८ . नयनन्दि विरचित
[४.७. द्रव्य व अपने प्राण भी दे सकती है। कोसल की स्त्री कुटिलता पूर्वक मन अर्पण करती है। सिंहलदेश की स्त्री गुणों में विशेषता रखती है; किन्तु पर-पुरुष से भी रमण करती है। द्रविड़ देश की स्त्री दंत-रस देती नहीं लजाती (दंतक्षत भी सहन करती है)। अंग देश की स्त्री अतिसुरत से विरक्त नहीं होती। लाट देश की स्त्री ललित वार्तालाप से अनुरक्त होती है। गौड़ी विज्ञान द्वारा रतिरस को भंग करती है। कलिंगदेशी स्त्री उपचारों द्वारा राक्षस को भी अनुरक्त बना लेती है। प्रत्यक्ष मनुष्य की तो बात ही क्या ? सोरठ देश की स्री को चुंबनरस प्रिय लगता है। गुर्जरी अपना कार्य साधना नहीं भूलती। मरहठी विलासिनी व धूत होती है। कोंकणवासिनी उपचारों से वश में आ जाती है। गोल्ली अपने आचरण में निर्मत्सर होती है। कर्नाटी रतिविलास में कुत्सित पाई जाती है। पाटलिपुत्र की स्त्री अपने गुणों का विस्तार करती है। पारियात्र देश की स्त्री पुरुषायत का अनुसरण करती है। हिमवंत देश की स्त्री वशीकरण की विधियां जानती हैं; और मध्य देश की स्त्री अपने प्रेमाचरणों में कोमल होती है। अब मैं इन सब स्त्रियों के अनुक्रम से प्रकृति प्रधान लक्षणों का वर्णन करता हूँ। मनुष्य भव धारण करनेवाली स्त्री तीन प्रकार की होती है-वातप्रकृति, पित्तप्रकृति और श्लेष्म प्रकृति ।
७. नारी प्रकृति
वात प्रकृति की स्त्री चंचल, बहुभोजी, बहुप्रलापिनी, कर्कशा, कठोर एवं भुजंगी के समान अति कृष्णांगी, भ्रमणशीला, तथा बहुत जीभ चलानेवाली होती है। ऐसी स्त्री गम्भीर शब्दों युक्त कठिन प्रहारों से सेवन करना चाहिये; शंका न करना चाहिये। जो पित्त प्रकृति स्त्री होती है, उसके नख पिंगलवर्ण, शरीर गोरा व पसीना कडुआ होता है। उसके अंग में मृगी के समान अति उष्णता होती है। वह क्षण क्षण में रुष्ट होती और दिन-दिन धूर्तता करती है। उसे सन्तुष्ट करना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, तथा शीतल आलिंगन और शीतल गंधविलेपन देना चाहिये। उसके साथ जितना भावे उतना घना रमण करना चाहिये। अब श्लेष्म-प्रकृति की युवती का वर्णन सुनिये। वह कदली के समान कोमल, वर्ण में श्यामल व अतिस्नेहल होती है। उसका श्रोणीतल मृदुल होता है। उसका साधारणरीति से की गई रति द्वारा सन्तोष हो जाता है। दोष दिखाई देने पर वह रोष से कांप उठती है, झट विरक्त हो जाती है, और अंग अर्पित नहीं करती। तब सत्य से, विनय से, दान से, प्रणय से कुछ न कहिये, किसी प्रकार उसका मन आकर्षित किया जाता है। (यहां निश्चय से मदन नामक छंद प्रयोग किया गया है)। स्त्रियों की भिन्न-भिन्न प्रकृतियां जैसे लक्षणों की होती हैं उस प्रकार कहा। जब ये गुण गुंथ कर एक ही में स्थित होते हैं, तव वे संकीर्ण कहलाते हैं।