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सुदर्शन-चरित
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जहाँ वे मुनि थे। जब मैं अपने हाथों को उष्ण करके बारबार उनके शरीर पर लगा रहा था, तभी झट सूर्य का उदय हुआ । तब वे मुनीन्द्र पैंतीस अक्षर बोलकर आकाशमार्ग से बिहार कर गये। मैंने वहाँ उन अक्षरों को सुन लिया । इसीलिए उन अक्षरों का मैं यहाँ वहाँ उच्चारण करता हूँ । मैं किञ्चित् भी उपहास नहीं करता । गोप की यह बात सुनकर सेठ ने कहाइस जग में यह मंत्र दुर्लभ है । इसका तूं आलस्य छोड़ अपने चित्त में ध्यान कर । ( इस छंद को रसारिणी के नाम से जानो ) । इस मंत्र को तूं उत्तम पैंतीस अक्षरों के रूप में, या सोलह, या पाँच, या दो, या एक अक्षर के रूप में क्रमश: अपने सिर, मुख, गला, वक्षस्थल, और नाभिकमल में
ध्यान कर !
९. णमोकार मंत्र का प्रभाव
इस मंत्र के फल से गुणरूपी मणियों के निधानभूत समचतुरस्र संस्थान, श्रेष्ठ वज्रवृषभनाराचसंहनन के धाम, एक सौ आठ लक्षणों के निवास, कर्मरूपी पाश का छेदन करनेवाले, चौंतीस अतिशयों से विशेष शोभावान् केवलज्ञानी, देवेन्द्र के मुकुट मणियों से घर्षित होनेवाले चरणों से युक्त, राग-द्वेष रहित, अपने सौम्य 'गुण से पूर्णचन्द्र की कान्ति को भी जीतनेवाले जिनवर होते हैं, चौदह रत्नों को सिद्ध करनेवाले नवनिधियों से समृद्ध चक्रवर्ती होते हैं, अपने प्रतिपक्षियों को जीतनेवाले महापराक्रमी मल्ल बलदेव और वासुदेव होते हैं; महान् गुणों और ऋद्धियों को धारण करनेवाले सोलह स्वर्गों के देव होते हैं; तथा नौ अनुदिश विमानों में एवं पाँच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होनेवाले त्रिभुवन में महान जीव होते हैं । इस मंत्र से उत्पन्न सुख का वर्णन करने में कौन समर्थ है ? इन्द्र भी असमर्थ है ? ( कडवक का छंद चित्रलेखा नामक पद्धडिया है, जिसके दोनों पद विषम होते हैं) । यदि मनुष्य अतिशय भक्ति से युक्त होकर पंचपरमेष्ठि का स्मरण करे, तो उसे फिर देर नहीं लगती; वह मोक्ष को भी पा जाता है, आकाश में गमन तो कौन सी बड़ी बात है ।
१०.
व्यसनों के दुष्परिणाम
हे पुत्र, जिस प्रकार आगम में सातों व्यसनों का वर्णन किया गया है, वह सुन ! सर्पादिक विषैले प्राणी असा दुःख देते हैं, किन्तु इसी एक जन्म में । परन्तु विषय तो करोड़ों जन्मजन्मान्तरों में दुःख उत्पन्न करते हैं, इसमें सन्देह नहीं । विषयासक्त होकर रुद्रदत्त चिरकाल के लिये नरकरूपी वन में जा पड़ा । जो मूर्ख बड़े आदर से बड़ी आकुलता से जुआ खेलता है, वह क्षोभ में आकर अपनी जननी, बहिन, गृहिणी तथा पुत्र का भी हनन कर डालता है। जूआ खेलते हुए
तथा युधिष्ठिर विपत्ति में पड़े। मांस खाने से दर्प बढ़ता है, और उस दर्प से मद्य का भी अभिलाषी बनता है, एवं जूआ भी खेलता है और अन्य बहुत से