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१२. १०.१०]
सुदंसणचरिउ तहिँ केवलिचरिउ अमच्छरेणं णयणंदि विरइउ कोच्छरेण । जो पढइ सुणइ भावइ लिहेइ सो सासयसुहु अरे लहेइ। घत्ता-णयणंदियही मुणिंदही कुवलयचंदही णरदेवासुरवंदही ।
देउ देउ मइ णिम्मल भवियहँ मंगल वाया जिणवरइंदही ॥१०॥ १० एत्थ सुदंसणचरिए पंचणमोक्कारफलयपयासयरे माणिक्कणंदितइविजसीसणयणंदिणा विरइए मइंदपरिवित्थरो सुरवरिंदथोत्तं तहा मुर्णिदसहमंडवं तसु वि मोक्खवासे गमणं णमोपयफलं पुणो सयलसाहुणामावली इमाण कयवण्णणो संधी दोदहमो समत्तो।
संधि ॥ १२॥ इय सुदंसणचरिउ समत्तो।
१०. २ क सुमच्छरेण । ३ ग घ वच्छरेण ।