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जयणदिविरहवउ
[११. २२. १७तो डरिय - थरहरिय। भासुरही . णेसरही णिसि जेमतही तेम। सा णट्ठ दप्पिटु ।
[आणंदो णाम छंदो] घत्ता-मुणिवरों विहियए संभरइ पाय जिणएवहो।
णयणंदियजयहो सुरणरफणिपविहियसेवहीं ॥२२॥
एस्थ सुदंसणवरिए पंचणमोकारफलपयासयरे माणिक्कणंदितइविजसीसणयणदिणा रहए सुदंसणमुणियरहो कह सुणेवि सुरदत्तए घरम्मि खडभालओ पुणु मसाणे जम्मंतरं संभरेवि उवसग्गय अभयावितरीए कय इमाण कयवण्णणो भणिो एयावहो संधी समत्तो।
संधि ॥११॥
२२. ५ क मुणिवर। ६ क णपणाणंदिय।