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११.२०.८]
सुदसणचरित महिहरे कुलभूसणदेसविहूसणमुणिवरहिं । उवसग्गहँ सहियइँ असुर विहियइँ खमधरहि ॥ चिरु दंडयराएँ अइसकसाएँ हूलियई । पंचसयमुणिंद" कुवलयचंदई" पोलियई। कयमायावेसे सीयसुरेसें राहवहो । उवसग्गु पउंजिउ तो वि ण भंजिउ जोउ तहो । कउरवकुलजोहहिँ तावियलोहहिं जं विहिओ। इय पंडुहि पुत्तहिँ णियमणउत्तहितं सहिओ। किउ पारसणाहहा हुयसिवलाहही कुसढेणं । उवसग्गु अभग्गें" अहणिसु लग्गें कमढेणं ।। इय अण्णहिँ वण्णहिँ णीसावण्णहिँ जइवरहिं । उवसग्गइँ सहियइँ णरसुरविहियइँ गुणहरहिं ।।
[कुवलयमालिणी णाम छंदो] घत्ता-मुणिहिं सकज्जु चिरु साहिउ* सहेवि उवसग्ग। हउँ वि पउ ओसरमि लइ दरिसिउ" एहु समग्गइँ ॥१९॥
२० अह तहि सम भिउडिभीसावणु विसरिससरिसणेत्तओ। सिसुससिसरिसदाढु पहरणकरु णिसियरु सो जि पत्तओ ॥ [रचिता]
तेण हक्किया सपाव दुट्ठभाव । हे णिहीण थाहि थाहि कत्थ जाहि। अज भज जीवमाण. लेमि पाण। तो सदप्पु वितरीट वुत्तु तीष्ट। रे पिसल्ल एहि एहि पाण लेहि। केण साहसेण बप्प णिव्वियप्प ।
१६. ६ ख उच्छल्लिउ । १० ग घ खमवरहि । ११ क ह ग घ हो। १२ क णियमयम उत्तहि ख णियमइवंतहिं । १३ ख अहंगें। १४ क महिउ । १५ ख दरिमाउं ।
२०. १ क समरथिरुः ख समइ। २ क °डादु। ३ क बुद्धिभाव । ४ क मझु जीवमाण ; ख जीवमाणु लेवि पाणुः ग घ लेवि पाण।