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११. ६. १६]
सुदंसणचरित कविला बंभिणि तहाँ हिययट्ठिय सावि सुदंसणरमणुकंठिय ।। मित्तमिसेण सहिए सो आणिउ संढउ भणिवि छुट्ठ णउ माणिउ । ता वसंते णंदणवणु फुल्लिउ तहिँ णिउ पुरयणेण सहु चल्लिउ । एत्थप अभयम वणु जतिण कविलय सहुँ सखेड पंतिट। किय पइण्ण जइ रममि ण वणिवरु तो मरेमि' किं णेहही दुक्करु । घत्ता-आइवि महु कहियउ म. सा पुणु पुणु वि णियारिय ।
उट्ठिय पक्खजुया कीडिय णं फुरइ असारिय ।।५।।
तह गिर सुर्णवि मइँ वि वाउल्लय' काराविवि ण पवडिया । पडिवापमुहणिसिहँ पडिहारहिँ सह कलहेवि फोडिया ॥ [रचिता] ता कवडु पयासिवि भड संतासिवि वणिवरु आणियउ । मइँ ताहे समप्पिउ ती मणप्पिउ जाम ण माणियउ॥ थण णहहिँ वियारेवि जण कूवारेवि सगुणविराइयउ। मारावइ जामहि णिसियरु तामहि इक्कु पराइयउ॥ तें भडथड वि समर वियंभेवि णरवइ वुत्त किह । ओलंबियवाहही वणिवरणाहही सरणे पहा जिह ॥ राएँ सिरि दिण्णिय णउ पडिवण्णिय वणिणा तउ लइउँ । अभया मुय तट्ठिय हउँ वि पणट्ठिय जा विउसिट कहिउ ।। तो विहसेवि गणिया थोवडथणियाँ सहसा उल्लवइ। कविला मइँ जाणिय अभया राणिय ण वियक्खण हवइ ।। मइँ कुलविण्णाणइँ करणविहाणइँ गेहपवट्टणई। रइमम्मण मणिय बंधइँ मुणियइँ दरणहघट्टणई॥ जो हुँतउ वणिवरु सो हुउ मुणिवरु किं वण्णियउ पई। जे जे गलगन्जिय ते ते रंजियं कवण ण कवण मई।
५. ७ क हिययं ठिय। ८ ख मित्तवसेण । ६ ख ग घ पच्छए । १० क मरेवि।
६. १ ख वाउल्लउ। २ क कारावेवि णिवडिया। ३ क संतोसिवि । ४ क मणु जंपिउ। ५ ख सगुणु विराइयउ। ६ ख कियउ। ७ क मय । ८ क तो घणथणिया। ६ ख गजिय ।