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१६ जयणदिविरइयउ
[८. ३६. ३१' कव्व लक्षण तक्क सुणिघंट"
सछंदालंकार वरचरणकरण सिद्धंतभेयइँ। जीवाण सुहासुहइँ" कम्मपयडिबंध अणेय ।।
मंतइँ तंतइँ सउणइं एत्थु ण कीरइ भंति ।
एक्कु मुएप्पिणु तियचरिउ सम्वइँ जाणिज्जा ३५ अस्सरासहँ सीहवग्याह
आसीविसविसहरहँ कह वि चित्तु विप्पट अलीढहे । अणुमित्तु वि तियहे पुणु को समत्थु इह वसुहवीढए॥ __ गहचक्कु वि अंबुसिलिलु वालुयणियरु विचित्तु ।
कह व पमावएँ जाणियए णउ पुणु तियहिँ चरित्तु ॥८॥ ४० खलहुँ जलणहुँ णहिहुँ सिंगियहुँ
दाढियहुँ णरवइकुलहुँ अरिहुँ सरिहुँ मित्तहुँ सकवडहुँ । बहुदोसहुँ मुक्खहुँ वि वसणियाहुँ तह ठगहुँ दूवडहुँ ।
किं बहुणा वरि एयहुँ वि जाइज्जइ वीसासु ।
णउ पुणु अणुमित्तु वि तियह जइ वि हु गुणहँ सहासु ॥६॥ ४५ चोरि णिग्घिणि लुद्ध चलचित्त
मायाविणि साहसिणि अलियरासि परयारमोहिय । अवहत्थियसीलगुण होइ णारि सब्भावदोहिय ॥ ___ जाणंतु वि एरिस वि गुण जो तहि पत्तिज्जेइ ।
सो दुक्खावलिरं पियश तिलु तिलु कप्पिज्जेइ ॥१०॥ मुयउ जसहरु तियविसासेण
साकेयपुराहिवइ देवरइ वि रज्जाउ भट्ठउ । णवणायसहस्सबलु तियविसत्थु कीयउ पणट्ठउ ॥
३६. २६ खणु। ३० क सुघंट। ३१ ख मरण सुहा । ३२ ख बंधण । ३३ क मइसरोसह ग घ अस्सरोसह । ३४ क अवलोढइ (टि• अवली); ग घ अलीढए। ३५ ख वीढहं । ३६ क पयार इं; ख कह व पमावइ जो णियइ। ३७ ख मुक्खहहे विसोणियहे। ३८ क दगडहुं धगडहुं, ग घ ठवहु धवडहु। ३६ ख एहु वि । ४० ख धिट्ठ। ४१ ख एरिसु गुणहिं । ४२ क वहो। ४३ ख विसंगु ।