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गयणदिविरहयउ
[७. ६.३पेच्छिवि पुरउ जति सियसेविट सलहिय सा अभयामहएविष्ट । उपहावियबंधवसुहिलोयण पुण्णवंत ग्रह वरगुणभायण। एत्वंतरि कविलाट पवुत्त देवि तुम्ह इय भणिवि ण जुत्तउ। ५ लायण्णे सोहग्गे उत्तम तुह समाण णउ रंभ तिलोत्तम। मीणइ सइ पउलोमी अच्छर सव्व वि तुह विहुवे णिम्मच्छर । तुह बुद्धिन सरसइ वि ण पुज्जइ इय सुणेवि अभयाट भणिज्जई। हलि सहि मझु काइँ वणिजइ पुत्ते विणु किं णारिहिँ छज्जइ । पुत्तु एक्कुं कुलगयणदिवायरु जणणिमाणरयणहा रयणायरु । जइ वि हुँ विरयइ जोव्वणखंडणु तो व्रितियहि पुत्त जि परमंडणु। ते परवण्णणु जुत्तु जि आयह गंदणवंतिहे कयपइरायहे । घत्ता-तो कविलय वुत्तु पुत्तु केम एयह हुउ।
एयह पइ संढ काहे वि पासइँ मइँ सुउ ॥६॥
हसेवि' तो झत्ति भणेइ राणिया ण याणए किं पि अलं अयाणिया। वणिंदआसत्तमणा वियंभिया विहस्स एसा फुड तेण डंभिया ॥ वंसत्थ ॥ इय वयणहिँ कविलए मुक्कु सासु किउ ईसि ईसि णियमुहवियासु । तो अभयादेविन वुत्त एम मझु वि तुहुँ गोवहि हियउ केम । मुहणयणवियारहि भासणेहि इंगियतणुचेट्रपयासणेहि। जाणिजइ जं किर परह। चित्तु हलि तं धुत्तत्तणु कवणु वुत्त । अइसन छेइल्ल वसति जेत्थु जाणिज्जइ ऊससियं पि तेत्थु । तो जंपइ कविला दर हसंति तुम्हग्गत लज्जमि हउँ कहति । जइ देवि देहि महु अभयदाणु । तो णिरवसेस भासमि कहाणु । लइ अभउ दिण्णु अभयाण वुत्तु लक्खियउ वि रक्खहि किं सचित्तु । १०
६. ३ क घ इह। ४ ग घ वुत्तउ। ५ क पोलोमी। ६ ग घ अभया पणिजइ। ७ क हलि हलि। ८ ख इत्थु। ६ क घ विहिं । १० कमियहि (टि० जाणीहि )।
१०. १ ख ग घ हसेइ। २ ख हले। ३ ख धुतत्तु वि। ४ ख देहि देवि ।