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संधि ७
सग्गही गट ताप्न सुरलीला सुईसणु।
भोयइँ भुजंतु अच्छइ लद्धपसंसणु ॥ बसस्थ ॥ कया वि सत्तीन' सुपुण्णु लिंतओ मुणीण सत्थे सुहवाण दितओ। कया वि भत्तीस जिणं थुणतओ महंत पूर्य ण्हवणं कुणतओ। कया वि सव्वण्हुणिकेय जतओ जिणेदतुंगालय कारवंतओ । कया वि दिव्वाहरणेहिँ राइओ पढंतवेयालियविंदसेविओ। कया वि पढें सरसं णियंतओ सुहावहं गेयसरं सुणंतओ। कया वि कीलाहरे विन्भमंतओ मणोजचोजेण पिया दमंतओ। कया वि हासेण वि रोसवंतओ सुचाडुआलावहिँ तोसवंतओ। कया वि थोवं पि हियं चवंतओ सुकंतपुत्तं णिरु सिक्खवंतओ। कया वि णाणाविहकजगुत्तओ अणेयसंकप्पवियप्पजुत्तओ। समीहए छेलहए वणिंदओ इमो वि वंसत्थु हवेइ छंदओ। घत्ता-इय सुविणोएहिँ चरिमाणंगउ अच्छइ ।
णरवइई पसाय' पुण्णवंतु संगच्छइ ।।१।।
वराण वाणी' तिलोयरंजया जसुत्तमा सीस भणति संजया।
जणाणुराओ तहाँ काइँ सीसए सुहासुहं लोट पयक्खु दीसए ॥ वंसत्थ ॥ लइ केत्तिउ धम्मही फलु सीसष्ट कर कंकणु किं आरसि दीसत्र। अच्छउ दंसणेण फंसेण वि होइ णेहु केण वि णिसुएण वि।
१. १ ग घ भत्तीए। २ क सुहयाणः ग घ सह दाणु। ३ क कयंतप्रो। ४ ख लीलाहरि । ५ ख हासेवि चरइ रमंतनो। ६ क मणोजभोएण सुहं जणंतनो। ७ ख समाहिहत्येहलहें। ८ क सुविणोयएहि ख सुविणोयं । ६ क पसाइय ।
२. १ ग घ विराय वाणीय। २ क पारिसे। ३ क वरएण वि ग घ परसेण वि। ४ क जि सुएण।