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रोगिमृत्युविज्ञाने पात्राण्यनलपूर्णानि मुण्डिनो जटिनोऽथवा ।
प्रविशन्नेव पश्येच्चेत् मुमूष रोगिणं वदेत् ॥ १२ ॥ - यदि वैद्य रोगी के घर में प्रवेश करते हुये, अग्नि से भरे हुये अँगीठी आदि पात्रों को अथवा जटाधारी साधुओं को यद्वा मुण्डीमुड मुडाये सन्यासियों को रोगी के घर से निकलते हये देखे तो रोगी को मरणासन्न समझ-कह दे कि यह असाध्य है, जल्दी ही मर जायगा ॥१२॥
वस्त्रं यानादि गमनं रोदनं शयनं तथा । भोजनामङ्गले पश्येत् प्रविशन् तद्गृहं त्यजेत् । १३ ।। इति श्री महामहोपाध्याय पं० मथुराप्रसाद कृते
रोगिमृत्युविज्ञाने नवमोऽध्यायः। - यदि वैद्य रोगी के घर में प्रवेश करते हुये, वस्त्र, यान-घोड़ा रथ वहल मोटर आदि निकलते देखे तथा किसी को बाहर जाते हुये देखे अथवा रोना, शयन करना यद्वा खटवा पर लेटना तथा भोजन करना, किंवा अन्य कोई अमङ्गल कार्य देखे तो रोगी को मरणासन्न समझ कर उसके घर को छोड़ दे ॥ १३ ॥ इति श्री म० म० मथुराप्रसादकृत रोगिमृत्युविज्ञान का
नवम अध्याय समाप्त ।
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