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रोगिमृत्युविज्ञाने क्षीणशोणितमांसस्य वातश्चोर्ध्वगतिवन् । ।
उमे मन्ये समीकृत्य प्राणान् हरति सत्वरम् ।। ५॥ जिसका रुधिर और मांस क्षीण हो गया हो, उसका वायु ऊर्ध्वगामी होता हुआ दोनों मन्याओं को अर्थात् ग्रीवा की दोनों नाड़ियों को बराबर करता हुआ, अर्थात् दोनों नाड़ियों को मिलाकर शीघ्र ही प्राण हर लेता है, ऐसी स्थिति में शीघ्र मरेगा ॥५॥ .. अन्तरैव गुदं गच्छन् नामि च सहसाऽनिलः ।
कृशयन् बंक्षणौ गृह्णन् सद्यो हरति जीवितम् ॥ ६॥ नाभि और गुदा के मध्य में सहसा चला हुआ, अर्थात् एक दम से नाभि और गुदा के मध्य में जोर से जाता हआ, दुर्बल उस रोगी को करता हुआ, वंक्षण-पार्श्व प्रदेश को पकड़ता हुआ अर्थात् पार्श्व-प्रदेश में घोर वेदना उत्पन्न करता हुआ अनिल (वायु) जल्दी , ही उस रोगी को मार देता है, अर्थात् वह मरणासन्न है ॥ ६॥
विततः पार्श्वकाग्रेषु गृह्वन् वक्षश्च मारुतः। स्तिमितस्यायताक्षस्य प्राणान् हरति सत्वरम् ॥ ७ ॥ पार्श्व के अग्रभाग में वितत (विस्तीर्ण) फैला हुआ प्रतीत हो, अर्थात् पार्श्व के अग्रभाग में वेदना हो और छाती को जकड़े हुए मारुत (वायु) निश्चल और आँखों को फैलाये हुए प्राणी के जीव को जल्दी हर लेता है, वह मुमूर्षु है ॥ ७ ॥
गुदं च हृदयं चोमे गृहीत्वा पवनो बली। हिनस्ति त्वरितं प्राणान् दुर्बलस्य विशेषतः ॥ ८ ॥
बली-उत्कृष्ट सर्व शक्तिमान् (क्योंकि "पित्तः पङ्गुः कफः पङ्गुः पङ्गवो मलधातवः । वायुना यत्र नीयन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत्") वायु गुदा और हृदय को साथ ही ग्रहण करता हुआ प्राणों का शीघ्र