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म०म० पं० मथुराप्रसाद दीक्षित
निर्मित अद्भुत अपूर्व ग्रन्थ
* कैलकुतूहळ * समस्त गृहस्थों के लिए उपयोगी दीक्षितजी का अद्भुत अपूर्वग्रन्थ केलिकुतूहल वैद्यक शास्त्रीय विषयों से युक्त होते हुए भी कामशास्त्र का अपूर्व ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में सोलह तरङ्ग हैं। इसका प्रत्येक तरङ्ग युवावस्थोन्मुख मनुष्य के लिये परमोपकारी लाभदायक स्वास्थ्य-बर्धक, तारुण्यसंरक्षक है । १-प्रथम तरङ्ग में उद्देश्य आदि वर्णनानन्तर तारुण्योन्मुख बालकों
में जो हस्तकर्म, पुमैथुनादि दोष पड़ जाते हैं । जिस से नपुसकता, ध्वजभङ्गादि हो जाने से जीवन भारभूत हो जाता है, दाम्पत्य सुख समूल नष्ट हो जाता है और लघुपाती हो जाता है, जिस से न स्त्री सुखी रहती है और न स्वयं सुख पाता है, उन दोषों का वर्णन है और उससे हटने की, उस दोष में न प्रवृत्त होने की
शिक्षा है। २-द्वितीय तरङ्ग में, दैवात् यदि किसी में उक्त आदत लग जाय और
उससे ध्वजभङ्गादि दोष उत्पन्न हो जाँय तो उस के प्रतीकार के लिये अनेक प्रकार के तिला लेप आदि प्रयोगों का वर्णन है । ३-तृतीय तरङ्ग में लघुपातित्वादि दोष निवृत्ति के लिये अद्भुत पर
मोपकारी सर्वसाधारण के निर्माण योग्य अनेक चर्ण मोदक आदि के बनाने का प्रकार और उनकी सेवनविधि का वर्णन है, जिससे
वह पूर्वापेक्षया भी अधिक शक्तिशाली चिरसेवी सुखी हो जाता है। ४-चतुर्थ तरङ्ग में सुगम लेपादि द्वारा पुस्तम्भन, स्त्रीद्रावण का
निरूपण किया गया है। ५–पञ्चम तरङ्ग में पद्मिन्यादि भेद, उनके लक्षण, स्वरूपादि का परि
ज्ञान कराया गया है।